फूल पाने की इच्छा रखने वालों को कांटे बोने से बचना चाहिए. जैसा आप करेंगे, वैसा ही यदि दूसरे भी करने लगेंगे तो आपको भी कांटे ही तो मिलेंगे. गीतकार मोहन अंबर ने दूसरों की राह में कांटे बिछाने वालों से जो कहा था, वह तो और भी कष्टकर हो सकता है. उन्होंने अपने एक बेहद प्रसिद्ध गीत में ऐसे लोगों को आगाह ही तो किया था :
"देखो शूल बिछाने वालो, मैं बदला ऐसे लेता हूं
जितनी डगर न मैं चल पाऊं उतनी डगर तुम्हें मिल जाए....
देखो धूल उड़ने वालो यह मेरा आभार-प्रदर्शन
धुंध-अंजे मेरे नयनों की सारी नज़र तुम्हें मिल जाए."
समझदारों को इशारा ही काफ़ी होता है.
-मोहन श्रोत्रिय
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