अमरीकी कारगुज़ारियों के पक्ष में भारत सरकार का इस तरह कूद पड़ना शर्मनाक है. यह अमरीकी दादागिरी और धौंसपट्टी को "वैधता" प्रदान करने से किसी तरह कम नहीं है. सरकार के जमीर को और देश के आत्मसम्मान को गिरवी रख देने जैसा कृत्य है यह. इसकी घनघोर निंदा होनी चाहिए.
अमरीका अपने हितों को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से दुनिया भर में कुछ भी करते फिरने का जो लाइसेंस दिखाता फिरता है, अपने हितों पर आंच आने की स्थिति में भी न केवल उसका विरोध न करना, बल्कि उसे जायज़ भी ठहराना इसके आलावा क्या दर्शा सकता है कि भारत सरकार "रीढ़-विहीन" है.
यह विशेष रूप से चिंताजनक इसलिए भी है कि अमरीका दुनियाभर में पिछली सदी के शीतकालीन तनाव के मुहावरों के प्रचलन को बढ़ावा देने की हर संभव कोशिश में लगा हुआ है, और विकासशील देशों के दक्षिणपंथी / वाम-विरोधी बौद्धिक तत्वों को अपनी गिरफ़्त में लेने के नए-नए तरीक़े भी काम में ले रहा है. इन तत्वों का यकायक आक्रामक और उग्र हो उठना इसलिए तनिक भी विस्मयकारी नहीं है.
-मोहन श्रोत्रिय
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