Wednesday 26 June 2013

''ज़िंदगी वेद थी, पर जिल्द बंधाने में कटी''


नीरज के एक मुक्तक की यह पंक्ति यों ही याद नहीं आ गई. हुआ यह कि अभी थोड़ी देर पहले बाज़ार गया. मिक्सर का जार ठीक करने के लिए छोड़ आया था परसों, उसे लेने गया था. उसे लेकर, और पैसे देकर जैसे ही पलटा तो एक बेहद पहचाने हुए से शख्स को अपनी ओर देखते पाया. चेहरा पहचाना हुआ हो, और नाम याद न आए तो बड़ी कोफ़्त होती है. अपनी बढती उम्र का अहसास कचोटने भी लगता है. परेशानी से बचने के लिए मैंने तुरत यह स्वीकार कर लिया कि मुझे उनका नाम याद नहीं आ रहा है. वह हंसे, और बोले : "ग़नीमत है, आपको मेरा चेहरा याद है, जबकि यह बहुत बदल गया है. कम ही लोग पहचानते हैं. नाम तो बदला भी नहीं है, पर अक्सर लोग चेहरे और नाम को जोड़ नहीं पाते हैं." इतना सुनना था कि मुझे उनका नाम भी याद आ गया. चेहरे पर न जाने कितने युद्धों की इबारत लिखी हुई थी, पर बोलने का उनका अंदाज़ अभी भी वही था, जो क़रीब तीस साल पहले कई दिन तक साथ रहने के कारण स्मृति में रच-बस गया था. या कहिए स्मृति में पंजे गड़ा कर बैठ गया था.
मैंने उनसे पूछा कि वह अभी भी गीत लिखते हैं क्या ! उत्तर में संक्षेप में उन्होंने अपनी राम-कहानी सुनाई कि कैसे उनके मकान पर दबंग और रसूख वाले किरायेदार ने कब्ज़ा कर लिया था, और उन्हें दर-बदर कर दिया था ! कैसे एक खास दोस्त और वर्षों के सहकर्मी ने "अपना किया" उनके सिर पर "मंढ कर" उन्हें नौकरी से निकलवा दिया था ! जितनी यंत्रणा उन्होंने झेली उसकी वजह से लिखना-पढ़ना तो बंद होना ही था. हल्की-सी हंसी की झलक दिखाकर वह बोले, " मेरी ज़िंदगी तो महाभारत में बदल गई, किन-किन कौरवों से जूझूं, अकेला ही." अपना कोई स्थाई ठीया- ठिकाना न होने, और ज़्यादा देर तक साथ न रह सकने की मजबूरी की बात कहकर वह यह वादा तो कर गए कि एक बार मिलने तो आएंगे ही. लगता है, वह वादा निभाएंगे. निभाते हैं, तो उनकी कहानी के बाक़ी हिस्से, बाद में!

कहने की ज़रूरत नहीं है, कि उनसे मिलना सुखद और प्रीतिकर लगा, पर उनकी अधूरी कहानी ने ही बेहद कष्ट पहुंचाया. एक भला आदमी कितना निरीह बन जा सकता है, कितना लाचार और निस्सहाय ! प्रतिभा और सृजन-क्षमता तो ऐसे में चली जाती है, तेल लेने ! एक बहुमूल्य जीवन की सारी रचनात्मकता जैस जिल्दसाज़ के यहां पड़ी हुई हो, और उनके पास जिल्दसाज़ी की क़ीमत अदा करने जितनी भी क्षमता न बची हो.

1 comment:

  1. उनकी अधूरी कहानी का बाकी हिस्सा निरीह न हो, यही विनती है भगवान से!

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