वह आया और बिना रुके बोलता रहा / चलिए, अभी इसी दम / बस चल पडिए / उठेंगे और चलेंगे नहीं / तो फिर पहुंचेंगे कैसे / कहीं भी.
मैंने पूछा/ कहां?/ उसने फिर कहा / कहीं भी.
कहीं भी में / कोई दिलचस्पी नहीं है अपनी / इतना कहकर मैंने उसका हाथ झटक दिया.
कही भी पहुंचने को तैयार/ होने के लिए/ ज़रूरी है भरपूर मात्रा में/ अवसरवादिता/ मौक़े का फ़ायदा उठाने का कौशल.
अपन को / नहीं पहुंचना कहीं भी / कोशिश करते रहेंगे/ पहुंचने की / जहां पहुंचना चाहिए/ सफल होना / न होना / नहीं है सिर दर्द अपना / तनिक भी.
चल पड़ने की आवाज़ भीतर से आती है / दिशा-संकेत भी मिलते हैं / वहीं से.
-मोहन श्रोत्रिय
No comments:
Post a Comment