Wednesday, 26 June 2013

यह भी कोई बात हुई !


वह आया और बिना रुके बोलता रहा / चलिए, अभी इसी दम / बस चल पडिए / उठेंगे और चलेंगे नहीं / तो फिर पहुंचेंगे कैसे / कहीं भी.

मैंने पूछा/ कहां?/ उसने फिर कहा / कहीं भी.


कहीं भी में / कोई दिलचस्पी नहीं है अपनी / इतना कहकर मैंने उसका हाथ झटक दिया.


कही भी पहुंचने को तैयार/ होने के लिए/ ज़रूरी है भरपूर मात्रा में/ अवसरवादिता/ मौक़े का फ़ायदा उठाने का कौशल.


अपन को / नहीं पहुंचना कहीं भी / कोशिश करते रहेंगे/ पहुंचने की / जहां पहुंचना चाहिए/ सफल होना / न होना / नहीं है सिर दर्द अपना / तनिक भी.


चल पड़ने की आवाज़ भीतर से आती है / दिशा-संकेत भी मिलते हैं / वहीं से.

-मोहन श्रोत्रिय 

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