Saturday 17 August 2013

दिल्ली का सिहासन पा लो, पर बिना झूठ और अफ़वाहों का सहारा लिए


झूठ और अफ़वाह इनके हथियार रहे हैं, वर्षों से ! इन दोनों का निर्लज्ज प्रसार इनका शौक रहा है, हित-साधन की सीढ़ी भी. इंटरनेट के ज़माने में ये "कहीं-की तस्वीरों को कहीं-और-की" बताकर अपना कारज साधने में लगे हैं. फ़ेसबुक रंगी पड़ी रहती है, हर रोज़, इन तस्वीरों से. इन फ़र्ज़ी तस्वीरों के ज़रिये एक समुदाय को दूसरे समुदाय के खिलाफ़ भड़काने-उकसाने का काम इनके राजनीतिक हितों की पूर्ति में सहायक होता बेशक दिखे, यह विभिन्न तरह के संकटों से गुज़रते हुए अपने समाज के साथ धोखा है. सुनियोजित है, इसलिए और ज़्यादा घृणित भी.

मज़ा यह है कि कंवल भारती को एक टिप्पणी की वजह से गिरफ़्तार किया जा सकता है, पर सही मायनों में देश में अमन-चैन को खतरा-बन-रही इस तरह की पोस्ट्स डालने वालों के खिलाफ़ किसी तरह की कार्रवाई करने की ज़रूरत न तो सरकार को महसूस हो रही है, और न अन्य किसी राजनीतिक पार्टी को ही.

किश्तवाड में हुई तीन मौतों के मामले में ये "तीन" के बाद कई "शून्य" लगाने में भी कोई संकोच नहीं कर रहे. इनमें हिम्मत नहीं कि इस सच का भी बयान करें कि एक हिंदू बारात को प्रशासनिक अधिकारीयों द्वारा सुक्षा देने में असमर्थता जताने की जानकारी मिलते ही मुस्लिम नौजवानों ने यह बीड़ा उठाया कि बारात निकलेगी, शादी होगी, और सुरक्षित घर लौटेगी, दुल्हन को लेकर. और ऐसा हुआ. इसे सांप्रदायिक तनाव के उस घटाटोप में एक चमकदार किरण के रूप में न केवल देखा जाना चाहिए, बल्कि प्रचारित-प्रसारित भी किया जाना चाहिए. ऐसी घटनाओं को रेखांकित किए जाने से आपसी सद्भाव को बढ़ावा मिलेगा.


-मोहन श्रोत्रिय

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