सोची-समझी
Saturday, 17 August 2013
देखो, उधर !
चट्टानी संकुल के पीछे
दिखा था जैसे सपने में
हरा-भरा विस्तीर्ण वन
जिसमें बहुतायत है
सघन फलदार वृक्षों की.
खोजना-बनाना है
वहां तक पहुंचने का रास्ता !
किसी को तो करनी ही
होती है पहल !
-मोहन श्रोत्रिय
1 comment:
अनुपमा पाठक
5 September 2013 at 00:36
सारगर्भित भाव!
***
सर, शिक्षक दिवस पर आपको चरणस्पर्श प्रणाम!
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सारगर्भित भाव!
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सर, शिक्षक दिवस पर आपको चरणस्पर्श प्रणाम!