Thursday, 26 April 2012

यारोस्लाव साइफ़र्त की तीन कविताएं

चेक कवि यारोस्लाव साइफ़र्त (1901-1986) जीवन के प्रति गहरी काव्य-समझ रखने वाले और उसमें निरंतर आस्थावान कवि के रूप में विख्यात हैं. 1984 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित इस विश्व-कवि की कविताओं में प्रेम, प्रकृति और मानवीय जीवन के विविध रंग गहरे और अलग काव्यबोध के साथ स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं.

1. प्लेग मृतकों की क़तारें

उनके बहकावे में मत आओ
कि शहर में प्लेग का 
दौर-दौरा खत्म हो चुका है.
मैंने खुद देखी हैं
अपनी ही आंखों से 
शहर के प्रवेश-द्वार से गुज़रती 
एक के बाद एक
अनेक लाशें ताबूतों में
रखी हुई.

ध्यान रहे शहर में वह
अकेला प्रवेश-द्वार नहीं है 
और भी हैं.
प्लेग की प्रचंडता अभी भी जारी है
ज़ाहिर है कि दहशत न फैले
इसलिए इसे दूसरे-तीसरे 
नाम दे दिए हैं डॉक्टरों ने  

यह कुछ नहीं है
उसी पुरानी मौत के सिवा.


2. मछुए के जाल में अटका बसंत

मछुए के जाल की चक्राकार 
झालरों में अटका है अटका है बसंत
पेड़ पटे पड़े हैं नई खिली कलियों से
जो मुस्काती हैं हम पर
हमें इधर-उधर देखता पा कर.

मछुए के जाल की चक्राकार 
झालरों में टंगे हैं तीन सितारे
हम आपस में परिचित हैं
इनमें से एक सदा याद रखता है मुझे
अंधियारी यात्रा के खत्म होने तक
मेरे घर के पथ को करता रहता है
आलोकित. कम ही लोग 
इतने सौभाग्यशाली होते हैं
कि सितारों में अपनी 
सच्ची प्रेमिका पजाएं.

मछुए के जाल की चक्राकार
झालरों में जकड़ी पड़ी 
है हवा
इसकी हंसी को
पहचानती हैं तमाम औरतें 
महसूस करती हैं इसे जब वे 
आपस में बतियाती हैं
पुरुषों के बारे में.

मछुए के जाल की चक्राकार 
झालरों में फंसे हैं
नाखून करुण आशंकाओं के
वैसी ही आशंकाओं के 
जिनसे गुज़रते हैं पुरुष
जब वे बात कर रहे होते हैं
स्त्रियों के बारे में.


3. पिकेडिली से आया छाता 

जिसे पता न हो अपने 
सच्चे प्यार के ठिकाने का
चौंको मत, वह मरने लग सकता है
इंग्लैंड की महारानी पर भी.
क्यों न हो! उसका चेहरा पुराने 
साम्राज्य के हर डाक टिकट पर
देखने वाले को आकृष्ट करता रहता है.
इसमें कोई शुबहा नहीं
कि गर वो चाहे मिलना महारानी से
हाइड पार्क में, तो बस यूं ही
इंतज़ार करता रह जाएगा.
अक्ल ज़रा सी भी 
काम में ले ले तो वह बुदबुदाता हुआ 
खुद को समझाता पाया जाएगा :
'मुझे पता है
हाइड पार्क में बरसात हो रही है.'

मेरा बेटा जब लौटा
इंग्लैंड से तो 
पिकेडिली से छाता ले आया
मेरे लिए.
जब भी ज़रूरत होती है मैं 
पा लेता हूं अपने सिर के ऊपर
मेरा अपना छोटा-सा आकाश
चाहे वह काला ही क्यों न हो!
इसकी तनी हुई पसलीनुमा
तानों में प्रवाहित होती रहती है
ईश-कृपा बिजली की तरह 
पानी न बरस रहा हो 
तो भी मैं खोल लेता हूं छाता
शेक्सपीयर के सानेटों की किताब पर
जो हर वक़्त मेरे साथ होती है 
मेरी जेब में.

कभी कभी मैं घबरा जाता हूं
ब्रह्मांड के दमकते गुलदस्ते को
देख कर. इसकी सुंदरता सब कुछ को
पीछे छोड़ जाती है, पर घुड़की लगाती है,
आंखें तरेरती है इसकी असीमता. बहुत
मिलती-जुलती लगती है वह 
मौत के बाद की नींद से.
हम निरंतर भयग्रस्त रहते हैं
हिमीभूत शून्य से, असंख्य सितारों के 
संकुलों से नहीं. बेशक उनकी दमक के आगे 
हम ठगे-से रह जाते हैं.
जिस सितारे को शुक्र 
नाम दिया गया, वह डराता है
आतंकित करता है, वहां अभी भी 
चट्टानें उबल रही हैं
और पर्वत श्रृंखलाएं विशाल लहरों की भांति 
उत्तप्त सांसें लेती हैं. वहां बरसात 
पानी की नहीं आग और 
गंधक की होती है.
हम न जाने कब से 
पूछते आए हैं कि नरक 
कहां है? बेशक यह वहीं है!
पर ब्रह्माण्ड के खिलाफ़ एक 
कमज़ोर-सा छाता कर ही क्या
सकता है? और फिर इसे
हर वक़्त साथ रखता भी 
कहां हूं?
मेरे लिए यही काफ़ी है
कि मैं धरती से जुड़ा-चिपका रहूं
जैसे रात्रि-कीट दिन कि रोशनी में
पेड़ की खुरदरी छाल से चिपके
रहते हैं.

कभी यहां स्वर्ग था. तमाम उम्र 
मैं उसी की तलाश करता रहा हूं
उसके कुछ निशान भी मिले हैं
मुझे एक स्त्री के
प्यार की गर्माहट से भरे होठों 
व गोलाकारों पर.
तमाम उम्र मैं तडपता रहा हूं 
मुक्ति के लिए. आखिरकार मैंने
खोज ही लिया एक दरवाज़ा
वहां तक पहुंचने के लिए.
मृत्यु!
आज जब मैं बूढ़ा हो गया हूं
एक सुंदर स्त्री का चेहरा कभी-कभी
मेरी पलकों को छू कर हौले से 
गुज़र जाता है. उसकी मुस्कान मेरे
खून में सरसराहट पैदा कर देती है.
लजाता हुआ-सा मैं देखता हूं
उसकी ओर और मुझे याद आती है
इंग्लैंड की महारानी जिसका चेहरा पुराने 
साम्राज्य के हर डाक टिकट पर 
छपा हुआ मिलता है.

ईश्वर महारानी की रक्षा करे !

अरे हां, मुझे अच्छी तरह से पता है
कि आज इस वक़्त
हाइड पार्क में बरसात हो रही है!
                          अनुवाद : मोहन श्रोत्रिय 

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