Tuesday 16 August 2011

एव्तुशेंको की दो कविताएं


बच्चों से झूठ बोलना ग़लत है............

बच्चों से झूठ बोलना ग़लत है
ग़लत है यह सिद्ध करना कि झूठ ही सच है.
उन्हें यह बताना  कि ईश्वर स्वर्ग में 
बैठा हुआ है और 
दुनिया में अमन-चैन है 
ग़लत है.

वे तुम्हारे अर्थ जानते हैं 
वे मनुष्य हैं 
उन्हें बताओ कि दिक्क़तें-मुसीबतें गिनी नहीं जातीं 
और उन्हें देखने-समझने दो
न सिर्फ भविष्य 

वर्त्तमान भी अपलक दृष्टि के साथ
उनसे कहो कि अवरोध होते तो हैं 
पर वे उनका सामना करें 
पीड़ा और तकलीफ़ें होती हैं 
लेकिन इस सबसे क्या?
कौन नहीं जानता कि 
खुशी यूं ही तो नहीं मिल जाती 
उसकी भी क़ीमत होती है

ग़लती जो दिखे तुम्हें 
क्षमा मत करो 
यह बढ़ेगी
और अपने आपको दोहराएगी 
और फिर 
बड़े होने पर अपने बच्चे
क्षमा कर दिए जाने के लिए 
हमें क्षमा नहीं करेंगे.

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सहृदयता

यह नहीं चल सकता 
अपनी तरह का एक ही अन्याय है यह 
पता नहीं कब, कि साल में 
शुरू हुआ इसका प्रचलन.
जीवितों के प्रति सोची-समझी उदासीनता 
और
मृतकों की चिरौरियां.

उनके कंधे झुक जाते हैं 
और कभी-कभी
वे नशे में धुत्त हो जाते हैं 
एक-एक करके प्रस्थान करने लगते हैं
क़ब्रिस्तान में वक्‍ताओं के मुख से 
झरने लगते हैं कोमल-मधुर शब्द
इतिहास के लिए.

वह क्या था जिसने मायकोव्‍स्की से
उसकी जान छीनली थी
वह क्या था जिसने उसकी 
अँगुलियों के बीच थमा दी थी बंदूक
काश ! उसकी दमदार वाणी 
और प्रखर व्यक्तित्व को
कभी दिए होते उन्होंने
कुछ टुकड़े शराफ़त के.

लोग जीते हैं, लोग लुच्चे होते हैं
सहृदयता-प्रदर्शन एक 
सम्मान है जो मिलता है
मरणोपरांत.

(अनुवाद: मोहन श्रोत्रिय)

4 comments:

  1. aapane anuvad ke liye achhi kavitaon ka chayan kiya hai. sundar rachanayen padane ke liye aabhar.

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  2. बहुत जरूरी कविताएँ और बढ़िया अनुवाद. आभार आपका !!

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  3. बेहद प्रभावशाली कवितायेँ ! तर्कसंगतता के साथ सत्य का प्रस्तुतीकरण ! आभार !

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  4. मूल/कवि का भी परिचय होता तो और भी अच्छा होता

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