Thursday 13 September 2012

सबसे ख़तरनाक (पाश)

विडंबना देखिए कि इस महान कवि की इस महान कविता को एनसीईआरटी की ग्यारहवीं कक्षा की पाठ्य पुस्तक से निकलवाने की मांग राज्यसभा में भाजपा के सांसद रविशंकर प्रसाद सिंह ने की थी, जो पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी होने के साथ-साथ पार्टी के प्रवक्ता भी हैं. इनकी यह मांग क्या पार्टी की मांग के रूप में नहीं देखी जानी चाहिए? खालिस्तानी उग्रवादियों के खि़लाफ़ खम ठोक कर खड़े होने वाले, और उन्हीं की गोलियों का निशाना बने इस परम देशभक्त, बड़े कवि के बारे में इस पार्टी व इसके नेताओं की यह समझ साहित्य-संस्कृति के लिए कितनी ख़तरनाक साबित हो सकती है !

पाश की कविता
सबसे ख़तरनाक
 
श्रम की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती
बैठे-बिठाए पकड़े जाना - बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना बुरा तो है
पर सबसे ख़तरनाक नहीं होता

कपट के शोर में
सही होते हुए भी दब जाना बुरा तो है
किसी जुगनू की लौ में पढ़ने लग जाना - बुरा तो है
भींचकर जबड़े बस वक्‍त काट लेना - बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता

सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
न होना तड़प का, सब सहन कर जाना,
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना

सबसे ख़तरनाक वह घड़ी होती है
तुम्हारी कलाई पर चलती हुई भी जो
तुम्हारी नज़र के लिए रुकी होती है

सबसे ख़तरनाक वह आंख होती है
जो सब कुछ देखती हुई भी ठण्डी बर्फ़ होती है
जिसकी नज़र दुनिया को
मुहब्बत से चूमना भूल जाती है
जो चीज़ों से उठती अंधेपन की
भाप पर मोहित हो जाती है
जो रोज़मर्रा की साधारणता को पीती हुई
एक लक्ष्यहीन दोहराव के दुष्चक्र में ही गुम जाती है

सबसे ख़तरनाक वह चांद होता है
जो हर हत्‍याकाण्ड के बाद
वीरान हुए आंगनों में चढ़ता है
लेकिन तुम्हारी आंखों में मिर्ची की तरह नहीं गड़ता है

सबसे ख़तरनाक वह गीत होता है
तुम्हारे कान तक पहुंचने के लिए
जो विलाप को लांघता है
डरे हुए लोगों के दरवाज़े पर जो
गुण्डे की तरह हुंकारता है

सबसे ख़तरनाक वह रात होती है
जो उतरती है जीवित रूह के आकाशों पर
जिसमें सिर्फ़ उल्लू बोलते गीदड़ हुआते
चिपक जाता सदैवी अंधेरा बंद दरवाज़ों की चौगठों पर

सबसे ख़तरनाक वह दिशा होती है
जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाये
और उसकी मुर्दा धूप की कोई फांस
तुम्हारे जिस्म के पूरब में चुभ जाये

श्रम की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती

(कविता विनायक काले की दीवार से, साभार. वहां "शेयर" का विकल्प उपलब्ध नहीं था.)

2 comments:

  1. स्वाभाविक है। शिक्षा का मतलब होता है, व्यवस्था के प्रति विद्रोह न होने देना। शिक्षा को व्यवस्था इसी टूल के तौर पर इस्तेमाल करती आई हैं। अब जो कवि मुर्दा शांति से भर जाने को, सपनों के मर जाने को खतरनाक कहता हो, वह क्योंकर पसंद आएगा बीजेपी को। प्रेमचंद भी बर्दाश्त नहीं होते उसे। दिल्ली में प्रेमचंद को पाठ्यक्रम से हटा तो दिया गया था बीजेपी सरकार के दौरान।

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  2. बहुत अच्छा लगा मुझे,ये मेरे लिए नयी जानकारी थी,...

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