अभी नही आया है
समय कि मेरी आवाज़
पर जड़े जा सकें ताले.
माना कि यह दौर है
बेहद निर्मम और सटीक
पर्याय भी
कृतघ्नता का
समय कि मेरी आवाज़
पर जड़े जा सकें ताले.
माना कि यह दौर है
बेहद निर्मम और सटीक
पर्याय भी
कृतघ्नता का
दिशाहारा निष्ठाओं का
और विष-बेल की तरह
पल-पल बढ़ती स्वार्थपरता का !
फिर भी बहुत कुछ बचा है
ज़रूरत है जिसे
सहेजने-संवारने की !
कनफोडू शोर में
सबसे तेज़ आवाज़ें
हो सकती हैं बेशक खुद को
प्रचारित करने का सुगम
मार्ग अपनाने वालों की.
पर ये आवाज़ें दीर्घजीवी
नहीं हो सकतीं. क़तई नहीं
कभी किसी हाल में नहीं.
कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं होता
गाल बजाने वालों
और मदारियों
के बीच. दोनों की सफलता
बन सकती है बायस
अल्पजीवी तोष का ही !
न कम, न ज़्यादा.
चुनौतियों से जूझने का
होता है अपना ही मज़ा
भरोसा हो बस
अपनी नीयत पर
अपनी क्षमताओं पर
और गंतव्य की दूरी
तथा पहुंचने की अनिश्चितता
के बावजूद संगी-साथी बने हैं जो
उनके अविचल-अविकल
साथ-संकल्प पर.
कठिन से कठिन रास्ते और
बनैले पशुओं से आबाद
बीहड़ जंगल भी
हो जाते हैं पार
भरोसेमंद साथियों के साथ
वे चाहे कम हों संख्या में.
ऐसे साथी तो कम ही होंगे
पर कहीं बेहतर होंगे
भानुमती के कुनबे से !
-मोहन श्रोत्रिय
और विष-बेल की तरह
पल-पल बढ़ती स्वार्थपरता का !
फिर भी बहुत कुछ बचा है
ज़रूरत है जिसे
सहेजने-संवारने की !
कनफोडू शोर में
सबसे तेज़ आवाज़ें
हो सकती हैं बेशक खुद को
प्रचारित करने का सुगम
मार्ग अपनाने वालों की.
पर ये आवाज़ें दीर्घजीवी
नहीं हो सकतीं. क़तई नहीं
कभी किसी हाल में नहीं.
कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं होता
गाल बजाने वालों
और मदारियों
के बीच. दोनों की सफलता
बन सकती है बायस
अल्पजीवी तोष का ही !
न कम, न ज़्यादा.
चुनौतियों से जूझने का
होता है अपना ही मज़ा
भरोसा हो बस
अपनी नीयत पर
अपनी क्षमताओं पर
और गंतव्य की दूरी
तथा पहुंचने की अनिश्चितता
के बावजूद संगी-साथी बने हैं जो
उनके अविचल-अविकल
साथ-संकल्प पर.
कठिन से कठिन रास्ते और
बनैले पशुओं से आबाद
बीहड़ जंगल भी
हो जाते हैं पार
भरोसेमंद साथियों के साथ
वे चाहे कम हों संख्या में.
ऐसे साथी तो कम ही होंगे
पर कहीं बेहतर होंगे
भानुमती के कुनबे से !
-मोहन श्रोत्रिय
Priyankar Paliwal दिशाहारा निष्ठाओं के समय में अविचल-अविकल भरोसे और दृढ़ संकल्प को प्रतिष्ठित करती कविता .
ReplyDeleteSeptember 5 at 9:58pm · Like · 1
Shailendra Shrivastava ...पर कहीं बेहतर होंगे
भानुमती के कुनबे से !
sachchi baat!
September 5 at 10:00pm · Like · 1
Ashok Kumar Bahut khub ....kabhi bhi samay nahi ayega jab apki awaz par jad diye jayein taale !
September 5 at 10:00pm via mobile · Like
Asha Pande Bhawan na kare is dish me kabhi sea waqt aaye.
September 5 at 10:03pm · Like · 1
Ashok Kumar Lekin sach yahi hai yah daur dishahara nishththaon ka hi hai.....behad nirmam ......nishthawan log hashiye par hain aur alpsankhyak ka darja pa chuke hain. Akela chalta hua admi magar pa jayega sath apne jaiso ka jinki manjil ek hogi !
September 5 at 10:21pm via mobile · Like
Alok Kaushik ''कठिन से कठिन रास्ते और
बनैले पशुओं से आबाद
बीहड़ जंगल भी
हो जाते हैं पार
भरोसेमंद साथियों के साथ...See More
September 5 at 10:22pm · Like · 1
चंदन कुमार मिश्र दिशाहारा! शब्द प्रयोग देखने लायक!
माना कि यह दौर है
बेहद निर्मम और सटीक
पर्याय भी
कृतघ्नता का
दिशाहारा निष्ठाओं का
और
कनफोडू शोर में
सबसे तेज़ आवाज़ें
हो सकती हैं बेशक खुद को
प्रचारित करने का सुगम
मार्ग अपनाने वालों की.
पर ये आवाज़ें दीर्घजीवी
नहीं हो सकतीं. क़तई नहीं
कभी किसी हाल में नहीं.
अधिक बढिया लगे।
September 6 at 2:51am · Like