Monday 8 August 2011

दोस्त हों तो ऐसे : मार्क्स-एंगेल्स थे जैसे

कल एक मित्र ने कहा :" दुनिया में प्रेमियों के किस्से तो खूब हैं, क्या आप प्रसिद्ध दोस्तियों के कुछ उदाहरण दे सकते हैं?" मैं सोचने लगा, कृष्ण-सुदामा के नाम लेना नहीं चाहता था क्योंकि उनसे जुड़ा एक ही मित्रता-प्रसंग आता है, जो किसी को भी पता है. वैसे भी मैं पौराणिक प्रसंगों की प्रामाणिकता में यक़ीन न होने की वजह से इस तरह के प्रसंगों से बचना भी चाहता था। बहुत देर तक सोचने के बाद मार्क्स-एंगेल्स के अलावा मुझे कोई अन्य मित्रता याद नहीं आई, जो इतने लंबे अरसे तक चली और जो एकदम निस्स्वार्थ थी, सभी अर्थों में. एंगेल्स ने मार्क्स को मार्क्स बनाने में जो भावनात्मक और आर्थिक सहयोग दिया ,वह अविस्मरणीय है. वह मार्क्स के कृतित्व के महत्व को अन्य किसी भी व्यक्ति की तुलना में अधिक जानते-समझते थे. मार्क्सवाद के रचनात्मक/वैचारिक आधार एंगेल्स ने भी निर्मित किए थे,पर उन्होंने अपनी क्षमता से कम काम किया क्योंकि उनका अधिक वक्त इस उद्यम में लग जाता था कि मार्क्स के घर की रसोई चलती रहे, चूल्हा जलता रहे , और मार्क्स निश्चिंत,निर्विघ्न काम कर सकें. एंगेल्‍स ने कुछेक बुनियादी प्रश्‍नों पर ऐतिहासिक महत्‍व का लेखन किया. पर वह मार्क्‍स को 'जीनियस' और स्‍वयं को महज़ प्रतिभाशाली मानकर चलते थे और इसलिए मार्क्‍स के लिए जीवन-यापन की अधिकतम सुविधाएं जुटा पाने में ही अपनी सार्थकता पाते थे. इनकी मित्रता की प्रगाढ़ता का इससे बड़ा उदाहरण क्‍या हो सकता है कि दोनों के नाम साथ-साथ आते हैं, बीच में होता है सिर्फ एक योजक चिह्न '-' यानी 'मार्क्‍स-एंगेल्‍स'. धन्य हैं ये दोस्त जिन्होंने मानवजाति को मुक्ति का मार्ग दिखाया.
आज के दौर में बहुत से लोगों को यह दोस्‍ती किंवदंती जैसी या कपोलकल्पित लग सकती है. इससे परिचित लोगों में भी बहुतेरे ऐसे हो सकते हैं, जिनके मन में यह सवाल आए कि एंगेल्‍स ने मार्क्‍स को दी गई आर्थिक सहायता के बदले किसी तरह की वाहवाही लूटने अथवा अपना पलड़ा भारी करने की तो कोई चेष्‍टा नहीं की. ऐसा विचार पैदा होना पूरी तरह अस्‍वाभाविक भी नहीं है, किंतु सच यह है कि जीवनपर्यंत एंगेल्‍स ने मनसा-वाचा-कर्मणा यह प्रमाणित कर दिया कि उन्‍होंने जो कुछ भी किया उसका उन्‍हें कोई गुमान तक नहीं था. वह जानते थे कि मार्क्‍स में ही दुनिया को बदलने की क्षमता रखनेवाले दर्शन का प्रतिपादन करने की क्षमता थी. मार्क्‍स की प्रसिद्ध 'थीसीज़ ऑन फ़ायरबाख़' की पहली ही स्‍थापना - ''अभी तक दार्शनिकों ने दुनिया की सिर्फ व्‍याख्‍या की है, जबकि असल काम उसे बदलने का है'' - में उन्‍हें हम लोगों से हज़ार गुना अधिक विश्‍वास जो था.
मार्क्‍स की मृत्‍यु से वह अकल्‍पनीय रूप से विक्षुब्‍ध थे. उन्‍होंने मार्क्‍स के चिंतन को आगे बढ़ाने का संकल्‍प व्‍यक्‍त करने के साथ-साथ बहुत खुलकर उनकी स्‍मृति-सभा में कहा था कि इस दर्शन का नाम मार्क्‍स के नाम के साथ ही जुड़ने का औचित्‍य है क्‍योंकि उनकी स्‍वयं की भूमिका तो मात्र एक सहायक की रही है. इसका खुलासा करते हुए उन्‍होंने यह भी स्‍वीकार किया कि इस दर्शन को जो योगदान मेरा है वह नहीं भी होता तो भी मार्क्‍स अपनी मेधा और अध्‍ययन के सहारे उन निष्‍कर्षों तक स्‍वयं पहुंच जाते.

12 comments:

  1. मार्क्स और एंगेल्स के नाम के बीच जो है वह विराम चिह्न न होकर योजक चिह्न है . इन दोनों को कभी अलग करके नहीं देखा जा सकता. इस अनूठी दोस्ती पर आपकी पोस्ट बेहद अच्छी लगी.

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  2. sundar aur jarooree pahal.lekin rang sanyojan par ek baar phir vichar jarooree hai. gaadhee prishthbhoomi. yah pathan ke liye sukar naheen hai.

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  3. सुन्दर.कहते हैं सच्ची दोस्ती वही है जो अपना प्रतिदान नहीं मांगती!

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  4. मित्रता दिवस पर इस नये ब्‍लॉग और उसकी शुरुआत में मार्क्‍स-एंगेल्‍स की ऐतिहासिक मित्रता को याद करते हुए मोहनजी ने जो आत्‍मीय टिप्‍पणी की है, वह वाकई मन छू गई। बहुत सटीक खरी मिसाल प्रस्‍तुत की है आपने। इतनी अच्‍छी टिप्‍पणी के लिए आभार और नये ब्‍लॉग के लिए शुभकामनाएं।

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  5. Bahut hi sundar post. khash kar ke doosara hissa to bahut hi badhiya hai. normally mitrata ke teen aadhar mane jate hain- yash, kam, dhanarjan ke base par jo superstructure khada ho/sambandh bane use dosti kahte hain. pag pag par pratidan nahi to time waster- friend. aise mein is smriti se kitna achha lagta hai ki mitrata ka aisa udaharan bhi ho sakta hai.

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  6. dosti ki aisi misal kam hi dekhne ko milti hai...aaj to dost bhi bahut kam hote hain...aur jo hain bhi woh apni zindagi ki bhagdaur mein ek-dusre ko samay tak nahi de pate hain...

    doston se milne ko hum sab bechain rehte hain par apni jimmedariyon ko nibhane mein hum doston se dur hote ja rahe hain...

    is post ko padhne ke baad achchi anubhuti hui...aur dosti ki pragadhta par khushi hui...

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  7. बहुत अच्छी पोस्ट। फ़िदेल कास्त्रो और चे ग्वेरा की दोस्ती भी ऐसे समय में याद की जा सकती है।

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  8. सुंदर पोस्ट है। लेकिन मित्रता तो लेनिन और गोर्की जैसी हो।

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  9. काफी पहले लाल बहादुर वर्मा ने इतिहासबोध का मित्रता विशेषांक निकाला था जिसमें मार्क्स-एंगेल्स की दोस्ती पर काफी मैटर था

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  10. इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचना चाहिए ..

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  11. बेहद सटीक और सार्थक आलेख है।

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  12. एक समान लक्ष्य और उस के लिए जीवन भर मिलकर काम करने का दृढ संकल्प, इसी मजबूत बुनियाद पर खड़ी हुई थी इन दो युगद्रष्टा हमसफरों की दोस्ती की इमारत. कभी हमलोग एंगेल्स के जन्म दिन को मित्रता दिवस के रूप में याद करते थे.

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