Sunday, 8 September 2013

यूपी गाथा


एक -

उत्तरप्रदेश में यह हो क्या रहा है?

अभी से रुला रहे हो, दो हज़ार चौदह !
तुम कब आओगे, दो हज़ार चौदह?
तुम आओगे नहीं तब तक रोटियां सेंकते रहेंगे सब, इस आग पर, जिसे जल्द-से-जल्द बुझा दिया जाना चाहिए.

ध्रुवीकरण की यह जो क़वायद चल रही है, कितनों की बलि लेगी?

चेत सपा, चेत ! खतरनाक खेल है यह ! आत्मघाती साबित होगा ! देश-घाती भी !

ज़रा सा स्वार्थ, ज़रा सी शह, ज़रा सी ढील...थोड़ा सा भी ढुलमुलपन...ले डूबेंगे.



दो -

भाजपा की #बी-टीम बनने में ही अपना भला और भविष्य देखना बंद नहीं किया अखिलेश यादव ने तो इतिहास उन्हें कभी माफ़ नहीं करेगा :

सांप्रदायिक तनाव बढ़ता देखते ही स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त न करना उतना ही महंगा पड़ेगा जितना सपा द्वारा प्रतियोगी-सांप्रदायिकता फैलाने को अपनी नीति बनाना.

अमित शाह के मंसूबों को ऐसे तो परास्त नहीं किया जा सकता, अखिलेश बाबू ! यह तो खुद चलाकर जाल में फंसने जैसा हुआ ! न कम, न ज़्यादा !

यूपी में जो होगा, वह पूरे देश को प्रभावित करेगा. ध्यान रहे, एक छोटी-सी चिंगारी काफ़ी होती है, सबका आशियां जलाने को. आग तो जब भड़कती है तो दाएं-बाएं, आगे-पीछे सब तरफ़ फैलती है, और प्रचंड से प्रचंडतर होती चली जाती है. राज्य-प्रशासन के निकम्मेपन को मुआवज़े बांटकर नहीं छुपाया जा सकता. मुआवज़े जख्मों को नहीं भर पाते, यह भी ध्यान में रखा ही जाना चाहिए.


तीन -

किसी #वहम के शिकार मत होओ, #कांग्रेसियो !

भाजपा-सपा को कोस कर, और दंगों की आग पर हाथ सेंक कर तुम राजनीतिक रोटियां नहीं सेंक पाओगे !

#मुज़फ्फ़रनगर दिल्ली से ज़्यादा दूर नहीं है ! ध्यान है न?

केंद्र में, और दिल्ली में भी, अभी सरकार तुम्हारी ही है. भूल तो नहीं गए?

तुम मज़े लेते रहोगे, तो यूपी को गुजरात बनने से तो नहीं ही रोक पाओगे, दिल्ली में भी इस संकट को न्यौत लोगे. इतनी कम-निगाही ठीक नहीं है, देश के लिए !

बनना-बिगडना, सिर्फ़ तुम्हारा होता, तो कुछ न कहता. न ताली बजाओ, न कोसो उन दोनों को, अपनी सकारात्मक भूमिका अदा करो. हस्तक्षेप करो, सक्रिय-सकारात्मक हस्तक्षेप !

-मोहन श्रोत्रिय

2 comments:

  1. मंगलवार 22/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    आप भी एक नज़र देखें
    धन्यवाद .... आभार ....

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  2. बहुत सुन्दर

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