Wednesday, 8 August 2012

शशि प्रकाश की तीन छोटी कविताएं

शशिप्रकाश की ये कविताएं पंद्रह से बीस बरस पुरानी हैं,पर आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी कि लिखे जाने के वक्‍़त थीं. 

कठिन समय में विचार

रात की काली चमड़ी में
धंसा
रोशनी का पीला नुकीला खंजर.
बाहर निकलेगा
चमकते, गर्म लाल
खून के लिए
रास्ता बनाता हुआ.

शिनाख्त

धरती चाक की तरह घूमती है.
ज़िंदगी को प्याले की तरह
गढ़ता है समय.
धूप में सुखाता है.
दुख को पीते हैं हम
चुपचाप.

शोरगुल में मौज-मस्ती का जाम.
प्याला छलकता है.
कुछ दुख और कुछ सुख
आत्मा का सफ़ेद मेज़पोश
भिगो देते हैं.
कल समय धो डालेगा
सूखे हुए धब्बों को
कुछ हल्के निशान
फिर भी बचे रहेंगे.
स्मृतियां
अद्भुत ढंग से
हमें आने वाली दुनिया तक
लेकर जाएंगी.
सबकुछ दुहराया जाएगा फिर से
पर हूबहू
वैसे ही नहीं.

द्वंद्व

एक अमूर्त चित्र मुझे आकृष्ट कर रहा है.
एक अस्पष्ट दिशा मुझे खींच रही है.
एक निश्चित भविष्य समकालीन अनिश्चय को जन्म दे रहा है.
(या समकालीन अनिश्चय एक निश्चित भविष्य में ढल रहा है?)
एक अनिश्चय मुझे निर्णायक बना रहा है.
एक अगम्भीर हंसी मुझे रुला रही है.

एक आत्यन्तिक दार्शनिकता मुझे हंसा रही है.
एक अवश करने वाला प्यार मुझे चिंतित कर रहा है.
एक असमाप्त कथा मुझे जगा रही है.
एक अधूरा विचार मुझे जिला रहा है.
एक त्रासदी मुझे कुछ कहने से रोक रही है.
एक सजग ज़िंदगी मुझे सबसे कठिन चीज़ों पर सोचने के लिए मजबूर कर रही है.
एक सरल राह मुझे सबसे कठिन यात्रा पर लिए जा रही है.

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