Thursday 19 January 2012

आना न आना तोताराम का

जिस आवासीय सोसाइटी परिसर में मैं रहता हूं, वहां कबूतरों की संख्या, एक अनुमान के अनुसार, तीन हज़ार को पार कर गई है. दिलचस्प बात यह है कि, और कोई पक्षी दिखाई नहीं पड़ते. कभी-कभार किसी मुंडेर पर दो-तीन कव्वे दिख जाते हैं. बहुत संभव है कि किन्हीं परिवारों को उनके यहां आने वाले मेहमान-पावणों की पूर्व-सूचना देने आ जाते हों. पिछले साल गर्मियों में एक तोता न जाने कहां से भटकता हुआ आ गया. जिस तरह वह उड़ने की कोशिश करता, उससे लगता कि वह उड़ने की आदत और अभ्यास दोनों ही भूल चुका था. शायद किसी घर का पालतू 'मिट्ठू' था, जो जैसे-तैसे पिंजरे से बाहर आ गया था. छोटी-छोटी दूरियां उड़कर पार की होंगी उसने कि हमारे परिसर के बड़े पार्टी लॉन के बीचोबीच का घनेरा दरख़्त दिख गया होगा उसे. यह भी संभव है कि वह बाहर सटी हुई बस्ती के किसी मकान से ही निकल भागा हो, या भगा दिया गया हो. सो इस दरख़्त को अपना ठीया बना लेना ही मुनासिब समझा होगा उसने. पर एक संकट था उसके सामने, जैसा जल्दी ही मुझे समझ में आया. खाने-पीने का क्या करे? कैसे जुगाड़-बैठाए. लंबी उड़ान भर पाना उसके लिए संभव नहीं था. घरों के आस-पास आए तो कुत्ते-बिल्लियों का डर. यहां पालतू कुत्तों की संख्या है भी चकित करने वाली. आम तौर पर कुत्ता पालते हैं लोग, घर की चौकसी के लिए, सुरक्षा के लिए. और यहां तो सुरक्षा के इंतज़ाम एकदम चाक-चौबंद हैं, तो फिर यहां क्यों? पालतू बिल्ली एक ही फ्लैट में है.
एक दिन सवेरे मैं टेरेस में बैठा चाय पी रहा था कि अचानक मेरे दाहिनी तरफ़ रखी प्लेट में रखी बिस्कुट पर चोंच मारी उस तोते ने. जिस तेज़ी से उसने झपट्टा मारा, मैं थोडा हडबडा गया, कुर्सी से गिरा तो नहीं. तोता निधड़क भाव से बिस्कुट पर चोंच-प्रहार कर रहा था पर बिस्कुट टूट नहीं पा रही थी. मैंने हाथ बढाकर मदद करने की सोची, तो तोता फुदक कर मेरे कंधे पर आ बैठा. जीवन में पहली बार ऐसा हुआ कि कोई पक्षी कंधे पर आ बैठा, वरना इससे पहले तो पुराने घरों में घोंसला बना लेने वाली घरेलू चिड़ियों तक ने इस लायक़ नहीं समझा था मुझे. कोई और होता मेरी जगह, तो वह "शुभ/अशुभ" के चक्कर में भी पड़ गया होता. ऐसा क़यास है मेरा, निष्कर्ष नहीं, क्योंकि बहुधा लोग सिर या कंधे पर पक्षियों के आ बैठने की भाग्य-सूचक मीमांसा करने/करवाने लग जाते हैं. बहरहाल, मैंने बिस्कुट के छोटे-छोटे टुकड़े करके प्लेट को बाईं तरफ़ की रेलिंग के पास उतने ही ऊंचे प्लेटफ़ार्म पर रख दिया. तोताराम निश्शंक भाव से प्लेट में रखा भोजन, अधिकारपूर्वक, करके उड़ गया, और उसी दरख़्त पर जा बैठा. अगले दिन ठीक उसी समय पर वह फिर नमूदार हो गया. उसे आते देख, मैंने बिस्कुट के टुकड़े करके पहले दिन वाली जगह पर ही रख दिया प्लेट को. चैन से तोताराम अपना काम पूरा करके वापस हो लिए. आज कोई प्यार-मोहब्बत का इज़हार नहीं किया उसने. तीसरे दिन पहले से ही व्यवस्था कर दी गई. उसे भी समझ आ गया कि उसकी जगह कौनसी है. वह सीधा वहीं जा पहुंचता. मज़ा यह कि दिन में कभी भी वह तोता इधर नहीं आता. कभी स्विमिंग पूल की मुंडेर पर तो कभी बिजली के पोल पर मिनट-दो मिनट के लिए झलक दिखला जाता.
पर एक दिन क्या हुआ कि हम घर पर थे नहीं. तोताराम आए, और न केवल आए बल्कि हमें नदारद पाकर, बहुत उत्पात भी मचा गए. हमें तो पता ही न चलता, अगर टेरेस का नज़ारा वैसा नहीं मिलता, जैसा कि मिला. नज़ारा परेशान करने वाला था. एक बड़ा ग़मला तो नीचे गिरा पड़ा था, चकनाचूर. उसमें लगा पौधा असहाय-सा पड़ा था, उखड़ कर दूर जा गिरा था. और एक दूसरे ग़मले में जो सबसे सुंदर पौधा लगा हुआ था, उसखी छाल, जगह-जगह से नोची हुई थी. मैं सन्नाटे में था, अपने सबसे प्रिय पौधे की दुर्दशा देखकर. हमारे टेरेस के सामने तैनात सीक्योरिटी गार्ड ने बताया कि तोते ने किया था यह सब. उत्तेजना के क्षण में, मैंने मन ही मन फ़ैसला किया, अब तोताराम का आना बंद !
पर ऐसा हो कैसे सकता था! अगले दिन सवेरे तोताराम फिर अवतरित हो गए. मैंने लाख कोशिश की उसे उड़ाने की, पर वह इधर से उधर मंडराता ही रहा. जाकर ही न दे ! उसका भोजन उसी जगह लाकर रख दिया, तो चुपचाप खाकर उड़ गया, दरख़्त की ओर. मुझे लगा पहले दिन उसने जो भी किया, निस्संदेह घोर हताशा से पैदा हुए गुस्से के वशीभूत ही किया होगा. मुझे अपने गुस्से पर शर्म आने लगी. उस दिन से यह तय हो गया कि उसका खाना उसे सही समय पर वहां मिल ही जाना चाहिए, प्लेट न छोड़ें तो भी. कुछ समय बाद एक दिन फिर ऐसा हो गया कि हमें कहीं जाना पड़ा, अलस्सुबह, और हम उसका खाना रखना भूल गए. जब याद आया तो मन में चिंता हुई, कि आज लौटने पर फिर कहीं वैसा ही नज़ारा देखने को न मिले. तीसरे पहर लौटे तो सबसे पहले टेरेस का दरवाज़ा खोल कर देखा तो सब कुछ एक दम सामान्य पाया. गार्ड से पूछा कि सुबह तोते को देखा था क्या? उसने जो जानकारी दी, उसने मुझे तोताराम का मुरीद बना दिया: कि तोता आया था, काफ़ी देर तक मंडराता रहा, फिर खाना न देखकर जाली के दरवाजे पर देर तक चोंच मारता रहा. घर में कोई हलचल न होती देख, वह निराश मन से, पर बिना कोई नुक्सान किए वापस उड़ गया. मैं स्तब्ध था. इतनी जल्दी तो मनुष्य भी सबक़ नहीं लेता !
अभी कोई पंद्रह दिन पहले तक यह सिलसिला मुसलसल चलता रहा. तोता आता, खाना खाता, उड़कर चला जाता. लेकिन पिछले दिनों अचानक उसका दिखना, उसका आना बंद हो गया. कहीं और चला गया क्या? या फिर किसी बिल्ली के पेट में चला गया? तोताराम के न दिखने से दिन पहले की तरह शुरू होता नहीं लगता. जैसे कोई अपना बिना बताये कहीं चला गया हो. रूठ कर? शायद नहीं, क्योंकि पिछले दिनों तो कोई भूल भी नहीं हुई थी हमसे. तोताराम के इस तरह चले जाने से और कई सवाल सिर उठाने लगे. कि क्या हो गया है कि इतने बड़े परिसर में कहीं भी चिड़ियों के घोंसले तक नहीं दिखते?  छोटे-छोटे घरों तक में, आम तौर पर जहां बिजली के मीटर लगे होते  हैं, वहां चिड़ियों के  घोंसले ज़रूर मिल जाते हैं. यह बेशक आज तक समझ नहीं आया कि बिजली के मीटरों के पास चिडियां इतना सुरक्षित क्यों अनुभव करती हैं ! पर यहां ऐसा नहीं है. तोता प्रकरण की शुरुआत के समय से ही मुझे लगने लगा, सही या ग़लत नहीं जानता, कि पक्षी मनुष्य को अधिक मानवीय बनाते हैं. हमारे इर्द-गिर्द पक्षियों  भांति-भांति के पक्षियों - का न दिखना कहीं हमारे मनुष्य होने पर कोई टिप्पणी तो नहीं है? 

8 comments:

  1. बिलकुल सर....बहुत बड़ी टिप्पणी है...अगर हम समझ जाएँ तो फिर बात ही क्या....

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  2. Romanchit kerta aapka ye sansmaran, tota to bahut samjdar hai waise bhi ab pashu pashi hi samjdar bache hai is sansar me.....wo hi manviya sanvednao ko samjhte hai ek hum hi hai jo pashu hote ja rahe hai aur sanvednao se bhi dur..........

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  3. Kya baat hai Bhai. Man bahut gahre tak spandit hua hai ise padhkar.

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  4. Kya baat hai Bhai. Man bahut gahre tak spandit hua hai ise padhkar.

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  5. This comment has been removed by the author.

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  6. 'पक्षी मनुष्य को अधिक मानवीय बनाते हैं.'
    ...something I have always strongly felt, now that I have got this here, I shall always treasure it in my list of quotable quotes!

    बेहद सुन्दर, संवेदनशील और आवश्यक प्रश्न उठाती पोस्ट!
    सादर!

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  7. हमारे इर्द-गिर्द पक्षियों भांति-भांति के पक्षियों - का न दिखना कहीं हमारे मनुष्य होने पर कोई टिप्पणी तो नहीं है?
    यह खतरे का संकेत हैं...अच्छा लिखा है आपने.

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  8. टिपण्णी छू गयी ,सोचने पर मजबूर कर गयी

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