अभी तक सड़कें और
बड़े-बड़े बांध ही बने हुए थे
पर्याय विस्थापन के.
रिहाइशी इलाकों मे जगह-जगह
उग रहे बड़े-बड़े बहु-मंज़िला मॉल
नए-नए शामिल हुए हैं इस सूची में.
सत्ता और पूंजी की जुगलबंदी
करती है यशोगान इनका
विकास के चमचमाते कीर्ति-स्तंभों के रूप में.
रिहाइशी बस्तियों में
छीनी इन मॉलों ने सबसे पहले धूप
फिर डाला डाका हवा पर
और इसके बाद लूटा घरों की "निजता" को
पिछले अठारह बरस से रह रहे थे जो
अपने मन-पसंद छोटे-से घरों में
यकायक धकिया दिए गए पिछवाड़े
कोर्ट-कचहरी कैसे आ सकते थे
इनके साथ वे तो रहे धूप और हवा तक
कब्ज़ा लेने वालों के साथ
भाड़ में जाएं क़ायदे-क़ानून
क़ानून का राज सुनिश्चित करने वालों की बला से !
एक सपना पूरा हुआ था जैसे
अठारह बरस पहले
एक मध्य-वित्त बस्ती में
धूप-हवा से भरपूर ठिकाने पर
एक छोटा, पर अपना, घर
पा जाने का.
बरसों इसी भरम में जीते रहने के बाद
कि खुद का घर होना
तो है "वैचारिक दोष" नैतिक
अपराध भी क्योंकि
यह तो आता है
निजी संपत्ति के दायरे में.
और निजी संपत्ति? वह तो
देती है जन्म शोषण को दोहन को
भरम टूटा
झटके से नहीं,
जो दिख रहा था उसे न समझ पाने के कारण
धीरे-धीरे. समझ का फेर था
अपना ही, जिन पर भरोसा था
परचम उठाने का
उनके तरीके इतने "महीन" भी नहीं थे
पर हमको ही दिखे नहीं.
और भरम के टूटने के बाद
मारे जब हाथ-पांव तो
पाया एक आशियाना
निगल गया बेदर्दी से मॉल
मुंह चिढाते हुए रखा
जिसने ओ के प्लस अपना नाम.
कौन ओ के? मैं तो नहीं.
कौन प्लस? मैं तो हो ही
नहीं सकता था "प्लस" जब
कर दिया गया "माइनस". नया
आने वाला तो "प्लस", और इस इलाके का
"आदिवासी" रातों रात बन गया
"माइनस". कैसा है यह गणित?
वैसा तो नहीं कुछ भी
जैसा पढ़ा था हमने
न तो गणित और न भूगोल.
इतिहास तो एकदम नहीं.
पूंजी का बल है जिनके पास
क़ानून की धज्जियां
उड़ाने की अनुमति कैसे दे देती है सरकार
और कचहरी जो जब चाहे ले लेती है
संज्ञान कुछ दूसरे मुद्दों का
कठघरे में खड़ा कर देती है
सरकार को जारी कर देती है
गिरफ़्तारी के आदेश तुर्रम खां
अफ़सरों की. क्यों रहती है मौन
क्यों दिखती है लाचार इतनी
पूंजी के बोरों के समक्ष? कि
कुछ न करके साष्टांग करती दिखती है.
अपने ही नियमों को डालकर
रद्दी की टोकरी में
जिनकी सेवा में हो जाती है
तब्दीली भू-उपयोग में
पार्क और अस्पताल दोनों
हो जाते हैं ख़ारिज
मॉल की सेवा में.
रद्दी की टोकरी में
जिनकी सेवा में हो जाती है
तब्दीली भू-उपयोग में
पार्क और अस्पताल दोनों
हो जाते हैं ख़ारिज
मॉल की सेवा में.
रिहाइशी को व्यापारिक में तब्दील
कर देने के मायने कितने खतरनाक !
जीना चाहो यदि चैन से तो बेचो
अपने घर सौंप दो व्यापारियों को
और नए सिरे से ढूंढो अपने सिर
के लिए एक छत
जैसे बहुत सरल हो कर पाना
यह सब ! कितना फ़र्क़ हैं माफ़िया के
सफ़ाई अभियानों और इस
सरकारी हरक़त में
सच कहो क्या ये दोनों जुड़वां
कार्रवाई नहीं लगती हैं तुम्हें?
किसकी क़ीमत पर होंगे विकसित
ये मॉल, और किसके भले के लिए
क्या पूंजी के बोरों ने खरीद लिया है
जिसे कहते हैं हम देश
अपना देश? किसके बूते पर
बना-बढ़ा पूंजी का कारोबार
किसने बनाया किसान को मज़दूर
किसने दिखाया रास्ता किसान को
आत्महत्या का किसने
बोलो किसने? किसने छीनी धूप और हवा
इस बस्ती की हज़ारों ऐसी बस्तियों की?
मैं जो इस बस्ती का आदिवासी था
कैसे बना पहला विस्थापित भी
इस बस्ती का?
व्यक्ति से बनता है समाज
चैन-छिना व्यक्ति बनाएगा कैसा
समाज? ये जो मोटे हैं और मुटाते जाएंगे
कब तक? कब रिहाई होगी
बंधक समाज की इन जोंकों से?
पूछता हूं फिर कि आखिर कब?