Wednesday, 15 February 2012

क्या ग़ज़ब है तुम्हारा प्रति-संसार !

तुमने बनाया एक चित्र
और हौले से कहा "गौरैया"
वह फुदकी और रेलिंग पर जा बैठी.
तुमने खींची कुछ रेखाएं लंबवत
कुछ छोटी, कुछ बड़ी और कुछ उनसे भी बड़ी
तुमने कहा "वृक्ष", और देखते ही देखते
दूर तलक सामने जाती थी
जहां तक भी नज़र
किसिम-किसिम के छोटे-बड़े
और कुछ उनसे भी बड़े पेड़
झूमने-लहलहाने लगे. हरियाली का
सैलाब दूर तलक.


तुमने दो-तीन जगह तेज़ी से
ब्रश को दबा कर खींचा
आड़े-तिरछे
गाढ़े सफ़ेद-सलेटी रंगों में
उठ गए यहां-वहां छोटे मोटे पहाड़
बहने लगे झरने. बन गयी
एक छोटी-सी झील. तैरने लगे
जल-पक्षी, मुर्गाबियों और बतखों से
मिलते-जुलते.


तुम सोचते-से बैठे रहे कुछ देर
और फिर तुमने पूरा झुक कर
केनवस पर कुछ आकृतियां बनाईं
पास-पास, एक ही धरातल पर
कुछ ऊपर, कुछ और ऊपर और कुछ
उनसे भी ऊपर. उन्हें तुमने संबोधित किया
"फूल", "तितली", "भंवरा" कह कर... और
दारुण आश्चर्य ! अलग-अलग आकार
रूप और रंग के आंखों को ठंडक और मन को
गर्मास देने वाले फूलों की जैसे फुलबारी ही
महक उठी. यहां-वहां चमकीले पंखों को
फड़फड़ाती  तितलियां बैठती- उड़ती,
फिर आ बैठती तितलियां रंगों से
खेलने लगीं. कृष्ण-वर्णी भंवरे
गूंज मचाने लगे.


तुम आंख मूंद कर धीरे से
फुसफुसाए जैसे खुद से ही
कह रहे हो कुछ
आओ मेरे प्रियजनो आओ ! और
यह तो हद ही हो गई
प्रकट हो गई अनेक आकृतियां
स्त्रियों, पुरुषों और बच्चों की
रंग बिरंगे परिधान पहने उम्र के विविध
पड़ावों पर गतिमय स्त्रियां, पुरुष
बालक-बालिकाएं. फूलों और पेड़ों को
निहारते हुए ये सब !


तो क्या अपना प्रति-संसार
निर्मित करने में लगे हो तुम?
इस असल संसार से मिलता-जुलता
पर इससे एकदम अलग भी !


इसमें और क्या-क्या जुड़ना
बाक़ी है अभी? क्या इसमें मुझे भी
जगह मिलने की संभावना है
कोई हल्की-सी भी?

8 comments:

  1. दा! जिसने अपना प्रति संसार रचा, तितली, फूल, भौंरे, पुरुष, स्त्री, बच्चे, पहाड़ आदि बनाये, उसने अपनी रचना का कमाल दिखाते हुए आप को भी बनाया है... आपकी जगह उसमें सुनिश्चित है.. हलकी नहीं, बल्कि भरपूर है....

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  2. एकदम डूब ही गई आपके द्वारा रचित कल्पनालोक में! बहुत ही सुंदर कल्पना और भाव। अपने साथ बहा ले जाते शब्द।
    आपकी इस रचना को पढना अतुल्य आनंद की अनुभूति है। बेहद सुंदर सर !

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  3. ab apne liye jagah kanha bachi he , khoobsoorat chitra hi kharab ho jata

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  4. वाह!!!
    अदभुद कल्पनाशीलता...
    मानों ईश्वर खुद सृष्टि रचना कर रहे हों...

    सादर..

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  5. प्रति संसार बेहद दिलफरेब। इसके जिक्र का अंदाज भी जादुई है। औऱ फिर आपके सवाल सपनों का जाल रचकर उसे हिला भी देते हैं।
    एक नई दुनिया बनाने का ख्वाब जिसे आपकी फेसबुक पोस्ट पर कास्त्रो दायित्व के तौर पर याद भी करा रहे हैं। और एक प्रति संसार बाज़ार ने भी रच दिया है।

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  6. तो क्या अपना प्रति-संसार निर्मित करने में लगे हो तुम?हाँ बाबा ,यही सवाल मैं खुद से भी पूछता हूँ और उत्तर मिलता है, नहीं |मैं चाहता हूँ कि लिखूं सपने और सारी दुनिया जाग रही हो |मैं लिखूं आग हर सड़क पर झंडे लहरा रहे हों ,मैं लिखूं प्रेम और ये मौसम हरा हो जाए |पर ऐसा नहीं होता |

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  7. सृजन तो है ही प्रतिसंसार...आपकी रचनात्‍मकता बहुत प्रेरक है मेरे लिए... बहुत अच्‍छी कविता के लिए मेरी बधाई स्‍वीकार करें।

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  8. अतुलनीय और जीवंत निर्मिति है यह संसार ... अंतर का अद्भुत चितेरा क्या खूब प्रतिसंसार रचता है ... ऐसे अद्भुत रचना संसारों से गुजरने का सुअवसर देने हेतु आभार सर ....

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