Saturday, 28 July 2012

कोई जगह नहीं है यहां स्त्रियों के लिए: दो कविताएं


बेटियों को नीलामी पर चढ़ाने को अभिशप्त है यह मां

वह लड़कियां
बेचने-ख़रीदने का काम
नहीं करती. वह तो बस मां है
आदि से अंत तक मां
बस एक मां ! खुले बाज़ार में
अपनी चार-चार बेटियों को
बोली पर चढ़ा देने का अर्थ
लड़कियों की तिजारत
कहां से हो गया?

यह उसकी तरफ़ से ऐलान है
जो भी सुन ले, उसके नाम
कि नौ महीने से छः साल
तक की बेटियों को पाल
नहीं सकती है वह.
किसके गाल पर तमाचा है
यह सच? इसमें क्या व्यक्त
नहीं होती इक मां की घनघोर
हताशा और उसका कनफोड़ू
हाहाकार? जानती है वह
कि ऐसे तो मर ही जाएंगी बेटियां
होकर भूख और कुपोषण की शिकार.
उसने लगाई होगी बोली जब
तो क्या उसने दबाया नहीं होगा
अपनी चीख को? भद्र लोग
नापसंद करते हैं कविता में
चीख और हाहाकार के आ जाने को
क्योंकि विघ्न डालता है यह
उनके आनंद-रस-बोध में
जो होना ही चाहिए कविता में,
कुछ भी होता रहे चाहे समाज में
जिसे कहते हैं हम मनुष्य-समाज !

इसलिए यह है सिर्फ़ एक बयान
एक हलफ़िया बयान !
बक़लम खुद...पूरे होशो हवास में...
     ----------------------------


कैसा है यह संदेश...!?!

कभी नहीं पकड़े जाएंगे
वे मां-बाप जिन्होंने
परसों
रेल के टायलेट में
जन्मी बच्ची को,
जन्मते ही त्याग दिया
नहीं नहीं नहीं
"नाल" समेत टायलेट की
सीट से पटरियों के बीच गिरा दिया
तय मानकर कि गिरते ही मर जाएगी
मर गई होगी. कड़ी-जान
वह सद्य-जात
सात घंटे तक चिढ़ाती रही
चिकित्सकों को, और तब तक
बहुत दूर निकल चुके माता-पिता को.

कभी नहीं पकड़े जाएंगे ये
जैसे नहीं पकड़े जा सके
तीन दिन पहले
ऐसे ही अपराध के दोषी माता-पिता
जिन्होंने बारां में यही किया था
फ़र्क़ सिर्फ इतना था कि
बेटी को "कूड़ा" मान फेंक
दिया था उन्होंने
कूड़े के ढेर में.

हर दो-चार दिन में दोहरा दी जाती हैं ये
घिन मितली और गुस्सा
पैदा करने वाली
क्रूरता और हृदयहीनता की शर्मनाक
मिसालें
वीरों की धरती कहे जाने वाले
मेरे अपने राजस्थान में!

नहीं होता मन
वीर मान लेने का
भगोड़ों और हत्यारों को !
कम वीभत्स नहीं है यह
असम, लखनऊ थाने
और खापों के चुनौती भरे
भयभीत करने वाले
संदेशों से !

एक तरह से संदेश
बहुत साफ़ है
जन्मते ही ऐसा नहीं कर दिया जाय तो
तैयार रहें आगे के अपराधों, धमकियों
कुकृत्यों के लिए. कोई
कुछ नहीं करेगा
न सत्ता, न क़ानून...
जातियों के अलमबरदार
बता रहे हैं सीना ठोंक कर
इसे अपने घर-परिवार का
मामला जिसमें
बरदाश्त नहीं किया जाएगा
हस्तक्षेप किसी का भी कैसा भी
बड़े अक्षरों में लिख दिया गया है जैसे
"कोई जगह नहीं है यहां स्त्रियों के लिए!"

4 comments:

  1. धन जी jordar bhadas...jayaz ..!
    July 15 at 9:16am via mobile · Like
    Sushila Shivran उफ़्फ़ !
    नमन आपकी लेखनी को Mohan Shrotriya Sir !
    July 15 at 9:27am · Unlike · 1
    Vishnu Tiwari Nisabbd.
    July 15 at 9:31am · Unlike · 1
    Prem Chand Gandhi बर्दाश्त नहीं किया जाएगा
    हस्तक्षेप किसी का भी कैसा भी
    बड़े अक्षरों में लिख दिया गया है जैसे
    "कोई जगह नहीं है यहां स्त्रियों के लिए!"... बहुत ही दर्दभरी कविता है...
    July 15 at 9:32am · Unlike · 1
    पद्मसंभव श्रीवास्तव यह मात्र अभिव्यक्ति नहीं, असुरक्षित जीवनाधिकार का अभिलेख है.इस सामाजिक प्रवृति के परिवर्तन के लिये समग्र प्रतिरोध के समर्थ स्वर प्रखर करने ही होंगे !
    July 15 at 9:32am · Unlike · 2
    Sarada Banerjee स्त्री-यथार्थ को ऊजागर करती अच्छी कविता।
    July 15 at 9:35am · Unlike · 1
    Pradyumana Jain shame on us
    July 15 at 9:45am · Unlike · 1
    Ganesh Pandey बड़े अक्षरों में लिख दिया गया है जैसे
    "कोई जगह नहीं है यहां स्त्रियों के लिए!" ....सचमुच।
    July 15 at 9:49am · Unlike · 1
    Gita Pandit बड़े अक्षरों में लिख दिया गया है जैसे
    "कोई जगह नहीं है यहां स्त्रियों के लिए!"... सच कहा आपने सर.... शर्मसार हूँ बस.....हमारा देश भारत महान है यहाँ तो स्त्रियाँ पूजी जाती हैं .... :(
    July 15 at 9:55am · Unlike · 1
    Ramash Singh मोहन जी को इस भावपूर्ण ,हृदय स्पर्शी कविता द्वारा सन्देश देने के लिए धन्यवाद
    हमने (मैंने जानबूझ कर मैंने नहीं लिखा)पढ़ा है कि हमारे शास्त्रों में स्पष्ट लिखा हुआ है कि जहाँ नारियाँ पूजी जाती हैं ,वहां देवता भ्रमण करते हैं. क्यों नहीं उस शास्त्र को हम जला दें?दूसरी बात यह ध्यान में आती है कि क्या निर्दोष बच्चियों की निर्मम हत्या में माताओं का हाथ नहीं है?प्रश्न यह उठता है कि नारियाँ ही नारियों की शत्रु क्यों हैं?एक और महत्त्व पूर्ण बात यह है कि अधिकतर ऐसा हिन्दू समाज में ही क्यों होता है?
    July 15 at 10:12am · Unlike · 2
    N.d. Mathur It has come from your heart.Congrats for your concern.
    July 15 at 10:24am · Unlike · 1

    Mohan Shrotriya पितृसत्ताक समाज के (कु)मूल्य इतने गहरे बैठा दिए गए हैं महिलाओं के मन में, और इतनी अधिक आतंकित हैं वे, इसलिए यह सिर्फ आभासी सच है कि महिला ही महिला की दुश्मन है. इसे पितृसत्ताक समाज की कार्यविधि की महीन चाल भी कह सकते हैं कि स्त्री "भोक्ता" होते हुए भी "कर्ता" दिखती है.
    July 15 at 10:32am · Like · 2

    ReplyDelete
  2. Param Prakash Rai like 'content', unlike 'form'...!
    July 15 at 11:09am · Like

    Mohan Shrotriya ‎@Param...Thanks. It is good that you like something. I'm deeply grateful.
    July 15 at 11:36am · Like
    Shweta Mishra Maarmik!
    July 15 at 12:32pm via mobile · Like · 1
    Narendra Kumar Singh Sengar samaj ke nairik moolyo ke patan ki parakastha....
    July 15 at 12:33pm · Unlike · 1
    Leena Malhotra samyik.. chetna kab jagegi..
    July 15 at 2:30pm · Like
    Krishna Kant ji bahut achchha likha...
    July 15 at 2:55pm · Like
    Girijesh Tiwari प्रणाम.
    July 15 at 6:57pm · Like
    Ajai Kumar Mishra Ek satyaparak anoothi kriti.
    July 15 at 8:08pm · Like
    Sudhir Kumar Soni बहुत सुंदर मोहनजी
    July 15 at 10:33pm · Like
    Shailja Pathak kuchh nhi bilane ko....
    July 16 at 8:23am · Like
    Shailja Pathak bolane ko...
    July 16 at 8:23am · Like
    Shashi Raghuvanshi kitne charcha karne walon ne kitney bachhey god le liye .000.1 % bhi nahi .....Andhron ki taraf ishara kanewale to bahut hain par ek dia jalane ke liye tel kharch karne wale bahut kam hai ,Aaj kal sanvedna ka pradarsan bhi hamarey samaj me pseudo tradition banti ja rahi hai .
    July 16 at 2:44pm · Like
    Shashi Raghuvanshi batware ke baad ka kesa bharat chor gaye hain Gandhi or kuch manu bhav usks udhahran hai Gang of wassey pur plz time nikal kar dekh lijiye po
    July 16 at 2:47pm · Like
    Sandeep Sharma अंधेरों की तरफ इशारा करनेवाले तो बहुत हैं पर एक दिया जलने के लिए तेल खर्च करने वाले बहुत कम है ..
    उपरोक्त सुंदर पंक्ति इस लेख पर खर्च ना करें.. साहसी का साहस है जो लिख दिया.. / अरब जनसंख्या से लबालब यह देश
    सदियों से यह अपराध झेल रहा है.. आज लिखत पडत ज्यादा है.. मीडीया भी अपनी दूकान सजाए है.. /
    सर जी का मन कितना व्याकुल होगा जब इन पंक्तियों को लिखने के लिए कलम उठाई होगी../ में तो यही बस सोच रहा हूँ..
    कहीं लिखा देखा था फिल्म क्षेत्र से सुस्मिता सेन ने दो अनाथो को बेटी बनाया है.. पाल रही है.. ऐसी साहस भरी सोच बरकरार रहे
    हम भी यही भर सोच रहें है.. ऐसी पुकार जारी रही.. इसी आशा के साथ..
    July 17 at 8:05am · Like
    डॉ. मनोज रस्तोगी कविता के जरिए असहनीय दर्द ,िजसका समय रहते उपचार न हुआ तो एक िदन बन जाएगा नासूर ।
    July 19 at 1:59pm · Like

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  3. Vinod Bharadwaj KYA KHUB
    July 20 at 4:27pm · Like
    Saraswati Mathur ‎"किसके गाल पर तमाचा है
    यह सच? इसमें क्या व्यक्त
    नहीं होती इक मां की घनघोर
    हताशा और उसका कनफोड़ू
    हाहाकार?" बहुत ही मार्मिक दशा है मोहनजी भाई साहिब...:(
    July 20 at 4:35pm · Like
    Suman Singh सलाम है !
    इस हलफिया बयान लिखने वाले को...
    इस के पीछे ,छिपे आक्रोश को , पीड़ा को, मर्मभेदी कराह को...!
    एक एक शब्द सटीक वार करता है....! __/\__
    July 20 at 4:40pm · Like
    Syed Khalid Mahfooz Marmik...! aur samajik waywastha par chot karti hui Sacchi Kavita
    July 20 at 4:45pm · Like · 1
    Anita Rathi Aaj ke samajik paristhiti or aurat ke anthkaran ki awastha ko kavita mein, marmik chitran aapki sidhast kalam hi kar sakti ha, . . .
    July 20 at 5:27pm · Like · 1
    Shuchita Srivastava yesi kavita ko salam hai........sach sunane wali yesi hi kavita ki jarurat hai....
    July 20 at 5:40pm · Like
    Kuldeep Anjum भद्र जन
    नापसंद करते हैं कविता में
    चीख और हाहाकार के आजाने को
    क्योंकि विघ्न डालता है यह
    उनके आनंद-रस-बोध में

    एक हलफ़िया बयान !
    बक़लम खुद...पूरे होशो हवास में...

    महसूस किया सर !
    July 20 at 10:13pm · Like
    Tiwari Keshav Sir ak jaroori ak poori kawita. Mere aagrah ka kuchh to sila mila. Badon ko hamare awadh me dhanyawad bhi nahi diya jata.bus sir ghuka diya jata ha.
    July 20 at 10:22pm via mobile · Like
    Misir Arun उसने लगाई होगी बोली जब
    तो क्या उसने दबाया नहीं होगा
    अपनी चीख को?........................ अब तो चीखना भी असभ्यता और गुनाह हो गया है ! कविता के पीछे से आपका तिलमिलाता चेहरा दीख रहा है ! अभी बहुत कुछ सहना होगा मनुष्य जाति को !
    July 20 at 10:27pm · Like · 1
    Prem Chand Gandhi इससे आगे सोचने भर से ही कांप जाता हूं मैं....
    July 21 at 8:37am · Like · 2
    Mahesh Bhardwaj sahi kaha hai..
    July 21 at 9:13am · Like
    Shakti Trivedi Sir, namskar- ma, behan aur betiyo ke liya aapki samvedanshilta kabile tarif h yadi har koi asehi sokhe aur anl kare to kitna mahan hoga mera bharat
    July 21 at 11:46am · Like

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  4. बेहतरीन....
    उत्कृष्ट रचनाएँ...
    सादर
    अनु

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