हथियार किसी के, हाथ किसी के...
मरने-मारने वाले कब समझेंगे
इस बहकी-वहशी सियासत के खेल को !
लड़ानेवालों और लड़नेवालों के हित एक नहीं हैं
कितना खून बह जाने के बाद
समझ में आएगी यह छोटी-सी बात !
लड़ानेवाले बचे रह जाते हैं
और मोहरा बने
लड़नेवाले धो बैठते हैं जान से हाथ
पीछे छूटे लोग विलाप करते रह जाते हैं
और इनमें से कुछ
उतारू हो जाते हैं नए सिरे से मरने-मारने को.
गद्दी पर बैठे लोग अपराधी हैं
भड़कती आग को देख
मुंह फेरे रहना भी तो अपराध ही है
और अपराधी हैं वे भी
जो जल्द-से-जल्द बैठ जाना चाहते हैं
गद्दी पर...हर गद्दी पर
गद्दी लखनऊ की हो या दिल्ली की.
गद्दी पा जाने तक
कितनी और जानें जाएंगी ऐसे ही
पूरे देश में
कोई अनुमान लगा सकते हैं इसका?
ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता कुछ भी.
लड़नेवालों को नहीं पता
लड़ानेवालों को कोई परवाह नहीं
मृतक तो महज़ आंकड़े होते हैं
लड़ानेवालों के दिल को आदत है पुरानी
कैसी भी हालत में न पसीजने की.
-मोहन श्रोत्रिय
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