tag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post8797598035537764560..comments2023-06-06T09:22:06.996-07:00Comments on सोची-समझी: फूल खिलते हैं, झर जाते हैंमोहन श्रोत्रियhttp://www.blogger.com/profile/00203345198198263567noreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-74885650417369658212012-01-29T21:40:10.922-08:002012-01-29T21:40:10.922-08:00कई बार पढ़ी और हिम्मत नहीं हो पाई कुछ कहने की। इतन...कई बार पढ़ी और हिम्मत नहीं हो पाई कुछ कहने की। इतने गहरे दुख से कविता निकली तो उस पर बात करने की भी हिम्मत नहीं हुई। वीरेन डंगवाल की पिता के निधन पर लिखी कविताएं याद आईं और गालिब की `लाज़िम था के: देखो मेरा रास्ता कोई दिन और` भी। इनका जिक्र करना भी शायद दुख को बढ़ाएगा ही। बस ग़ालिब ही- `ताब लाए ही बनेगी...`Ek ziddi dhunhttps://www.blogger.com/profile/05414056006358482570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-31212825878573535512012-01-28T06:00:30.746-08:002012-01-28T06:00:30.746-08:00"जिन्होंने दो साल के फ़ासले पर खो दिया था
अपन..."जिन्होंने दो साल के फ़ासले पर खो दिया था<br />अपना दूसरा और आखिरी बेटा.<br />चेहरे सबके गड्ड-मड्ड<br />किसी का सिर तो आंखें किसी की,<br />हाथ किसी और के <br />सिर ढंका हुआ, झुका हुआ <br />आंख टपकती हुई<br />हाथ आंसू पोंछता हुआ, और इनसे <br />अलग एक चेहरा एकदम पथराया <br />निर्विकार भावशून्य स्थितप्रज्ञ"<br /><br />कल भी पढ़ी थी मगर दिल भारी हो गया और मन उड़्कर पहँच गया उन उम्रदराज़ चेहरों के पास ! शब्दों और हाथों ने साथ नहीं दिया! मर्मांतक पीड़ा - जैसे दोनों आँखों की नेत्रज्योति चली गई हो ! प्रभु संताप ग्रस्त परिवार को धीरज दे।sushilahttps://www.blogger.com/profile/05803418860654276532noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-13956201180793826792012-01-27T22:32:38.111-08:002012-01-27T22:32:38.111-08:00Anju Sharma ने फ़ेसबुक पर कहा:
बाबा, अपनों को खोन...Anju Sharma ने फ़ेसबुक पर कहा:<br /><br />बाबा, अपनों को खोने का दुःख भीतर तक भिगो देता है, गीता पढ़ते हैं और हम सभी जानते हैं कि आना और जाना तय है, किन्तु इस जाने के बाद पीछे रह गए लोगो पर इसका प्रभाव तोड़ डालता है, ऐसी हर घटना में बाद लगता है दुःख सहने की कितनी ताकत है हम लोगों में, कित्नु निरुपाय होते हैं हम क्योंकि नियति को स्वीकार करने के अतिरिक्त हमारे पास क्या विकल्प होता है, खैर....आहत संवेदनाओं को सहेजने की ताकत ही इस दुःख का निवारण है....ईश्वर आपको सब सहने की शक्ति दें....और दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें.....<br /><br /><br />Ashok Kumar Pandey ने फ़ेसबुक पर कहा:<br /><br />खुशी की तरह दुःख की भी एक लय होती है. भीतर ही भीतर तोड़ देने वाली है. एक क्षण होता है इन दोनों के बीच...उस क्षण को वही महसूस कर सकता है जिसने जिया है. क्या कहूँ उस दुःख को अपने भीतर कहीं गहरे महसूस कर पा रहा हूँ.<br /><br /><br />ChainSingh Parihar ने फ़ेसबुक पर कहा:<br /><br />आशुतोष कुमार जी ने ठीक बात कही है ...में भी येही महसूसता हूँ ...श्रोत्रिय्रजी के बारे में ....मोहन श्रोत्रियhttps://www.blogger.com/profile/00203345198198263567noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-58102901813440941312012-01-27T17:35:09.463-08:002012-01-27T17:35:09.463-08:00शब्द जैसे चापुओं की आवाज़ के साथ, आपको ज़िंदगी की नद...शब्द जैसे चापुओं की आवाज़ के साथ, आपको ज़िंदगी की नदिया में बस उतार देते हैं..कभी शांत सा सफ़र, सुखद नज़ारा तो कभी अवसाद...यही जीवन है, इस भेद को खोलने में यह कविता अगर सफ़ल है, तब इसे सफ़ल काव्य ही माना जायेगा...और हां, अनुपमा बहन की स्वीडिश कविता का भी जवाब नहीं...अजीबो गरीब काव्य है..शेयर करने के लिये धन्यवाद.Shamshad Elahee "Shams"https://www.blogger.com/profile/14542269543461516533noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-62395061951682252162012-01-27T09:30:03.529-08:002012-01-27T09:30:03.529-08:00थोड़ा थोड़ा कर के जितना आप को जानने का अवसर मिलता...थोड़ा थोड़ा कर के जितना आप को जानने का अवसर मिलता है , विस्मय उतना ही बढ़ता जाता है ...और यह कहते भी संकोच होता है कि आप कहोगे मस्केबाजी कर रहा है . लेकिन इतनी संवेदना और बौद्धिक सजगता एक साथ करिश्मा सी लगती है हमारी पीढ़ी को , मोहनदा . इस से ज्यादा कहने की आँखें इजाजत नहीं देतीं .आशुतोष कुमारhttps://www.blogger.com/profile/17099881050749902869noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-38141336268330415132012-01-27T09:06:15.521-08:002012-01-27T09:06:15.521-08:00खुशी की तरह दुःख की भी एक लय होती है. भीतर ही भीतर...खुशी की तरह दुःख की भी एक लय होती है. भीतर ही भीतर तोड़ देने वाली है. एक क्षण होता है इन दोनों के बीच...उस क्षण को वही महसूस कर सकता है जिसने जिया है. क्या कहूँ उस दुःख को अपने भीतर कहीं गहरे महसूस कर पा रहा हूँ.Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-51492778994669252192012-01-27T07:02:43.401-08:002012-01-27T07:02:43.401-08:00ये नीरस प्राण किसे दे डालूँ !
कर में लेकर भिक्षा क...ये नीरस प्राण किसे दे डालूँ !<br />कर में लेकर भिक्षा का प्याला ,<br />खुद को अमिताभ बना डालूँ !<br />यह है इस धरती की थाती ,<br />हूँ चाहता इसी तरह जी डालूँ !<br /><br />दुखद अभिव्यक्ति नि:शब्द होती है !धीरेन्द्र अस्थानाhttps://www.blogger.com/profile/14444695558664600159noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-8716859831186444172012-01-27T07:01:58.305-08:002012-01-27T07:01:58.305-08:00सर, इस कविता को मुझसे अधिक और कौन समझ सकता है. हो ...सर, इस कविता को मुझसे अधिक और कौन समझ सकता है. हो सकता है कोई समझ सके लेकिन मेरी तरह जी नहीं सकता इस कविता को. उस अठारह घंटे के एक सिरे पर मैं जो हूँ. आपके स्नेह से और आपके दुःख से, दोनों से ही मन भीगा भीगा है. लिख तो बहुत कुछ सकता हूँ, इस कविता के बारे में फिर भी वह व्यक्त नहीं कर सकता जो मेरे मन में है. मेरे अलिखे भावों को भी आप समझ लेंगे, इसका तो मुझे पूरा विश्वास है. <br /><br />सईद.SAKhttps://www.blogger.com/profile/05787063398972111584noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-86794110495723759402012-01-27T06:18:08.485-08:002012-01-27T06:18:08.485-08:00poori vastvikta se parichit hoon isliye sundar kav...poori vastvikta se parichit hoon isliye sundar kavita nhi kah sakti.. bas khamoshi se padh gai.. man bhari ho uthha hai.. (,./;)लीना मल्होत्राhttps://www.blogger.com/profile/07272007913721801817noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-13870976009893210262012-01-27T05:40:45.403-08:002012-01-27T05:40:45.403-08:00shabd asamarth ho jate hain kuchh kahane main saya...shabd asamarth ho jate hain kuchh kahane main sayad aisi hi sthiti hoti hogi tab.Mahesh Chandra Punethahttps://www.blogger.com/profile/09695768908018459567noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-39822328986305895342012-01-27T05:31:24.391-08:002012-01-27T05:31:24.391-08:00पूरा नहीं पढा अभी... ... लेकिन आभासी दुनिया वास्तव...पूरा नहीं पढा अभी... ... लेकिन आभासी दुनिया वास्तविक लग रही है वाली बात पर ध्यान गया!चंदन कुमार मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-9504035902070171282012-01-27T04:24:58.507-08:002012-01-27T04:24:58.507-08:00क्या कहें ..?शब्द न तो होठों पर आ पा रहे हैं और न ...क्या कहें ..?शब्द न तो होठों पर आ पा रहे हैं और न ही उंगलियों पर कि उन्हें यहाँ टाँक सकू...|देखते है समय के इस मलहम को , ...|अब तो उसका ही आसरा है....|रामजी तिवारी https://www.blogger.com/profile/03037493398258910737noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-63021766819732782612012-01-27T04:20:27.006-08:002012-01-27T04:20:27.006-08:00इतनी लयात्मक की लय हो गया पढते पढते ....यही है जिं...इतनी लयात्मक की लय हो गया पढते पढते ....यही है जिंदगी कुछ चला आता है अनायास ...कुछ चला जाता है हठात ....सर नमनashvaghoshhttps://www.blogger.com/profile/04330878210210044156noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-4278978437266947122012-01-27T04:07:37.230-08:002012-01-27T04:07:37.230-08:00बाबा, अपनों को खोने का दुःख भीतर तक भिगो देता है, ...बाबा, अपनों को खोने का दुःख भीतर तक भिगो देता है, गीता पढ़ते हैं और हम सभी जानते हैं कि आना और जाना तय है, किन्तु इस जाने के बाद पीछे रह गए लोगो पर इसका प्रभाव तोड़ डालता है, ऐसी हर घटना में बाद लगता है दुःख सहने की कितनी ताकत है हम लोगों में, कित्नु निरुपाय होते हैं हम क्योंकि नियति को स्वीकार करने के अतिरिक्त हमारे पास क्या विकल्प होता है, खैर....आहत संवेदनाओं को सहेजने की ताकत ही इस दुःख का निवारण है....ईश्वर आपको सब सहने की शक्ति दें....और दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें.....अंजू शर्माhttps://www.blogger.com/profile/13237713802967242414noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-84172768590014381352012-01-27T04:02:40.435-08:002012-01-27T04:02:40.435-08:00इस लयात्मक टिपण्णी पर क्या टिपण्णी कर सकते हैं हम....इस लयात्मक टिपण्णी पर क्या टिपण्णी कर सकते हैं हम...<br />पढ़कर आँखें हैं नम...<br /><br />एक स्वीडिश कविता पढ़ी थी... उसका अनुवाद भी किया था...<br />sharing here-<br />Så liten plats en människa tar på jorden.<br />Mindre än ett träd i skogen.<br />Så stort tomrum hon lämnar efter sig.<br />En hel värld kan inte fylla det.<br /><br />Så litet en människa hjärta är.<br />Inte större än en fågel.<br />Rymmer ändå hela världen<br />och tomma rymder större än hela världen<br />ändlösa tomma rymdskogar av tystnad sång.<br /><br /><br />संसार में कितनी जगह लेता है इंसान<br />जंगल में एक वृक्ष जितनी जगह लेता है शायद उससे भी कम<br />पर इतना विशाल शून्य पीछे छोड़ जाता है<br />एक पूरी दुनिया मिलकर नहीं भर सकती<br /><br />इंसान का दिल कितना छोटा है<br />एक पक्षी से ज्यादा बड़ा नहीं<br />पर अन्दर समाहित किये हुए पूरी दुनिया<br />और वहाँ व्याप्त शून्य... दुनिया से भी बड़ा<br />जैसे अंतहीन खाली जगहों में गूंजता जंगल का मौन संगीत.अनुपमा पाठकhttps://www.blogger.com/profile/09963916203008376590noreply@blogger.com