tag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post6451348798130061433..comments2023-06-06T09:22:06.996-07:00Comments on सोची-समझी: तिरेसठ बरस पहले की बात है यहमोहन श्रोत्रियhttp://www.blogger.com/profile/00203345198198263567noreply@blogger.comBlogger30125tag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-51213373810675455862015-09-11T11:35:29.514-07:002015-09-11T11:35:29.514-07:00बहुत ही सुंदर एवम् भावनात्मक चित्रण। बचपन में माँ ...बहुत ही सुंदर एवम् भावनात्मक चित्रण। बचपन में माँ का गुजर जाने की मेरी पीड़ा को शब्द दे दिये आपने।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/02077515446066808506noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-23694453081643516042012-01-17T02:26:47.105-08:002012-01-17T02:26:47.105-08:00Maa is g8.............Maa is g8.............babahttps://www.blogger.com/profile/16155862764217062355noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-66219278976976076052012-01-16T23:06:48.996-08:002012-01-16T23:06:48.996-08:00पहली बार हिला हूँ इस तरह से...माँ के कई रूप हैं औ...पहली बार हिला हूँ इस तरह से...माँ के कई रूप हैं और हर रूप में माँ की ममता सबसे ऊपर होती है लेकिन आपने तो ममता के आयाम ही बदल दिए...<br />फिर भी अनेक अवसरों पर <br />कसक रही कि मां होती<br />उपलब्धियों से खुश तो वह ही <br />हो सकती थी पुरस्कारों<br />सोने के मेडल में उसका सपना<br />ही तो दिख सकता था उसे<br />जिनसे भी साझा की मैंने<br />विषाद मिश्रित खुशी <br />हर बार मैं खोजने लगता<br />वह चमक चेहरे पर जो उस सुर्ख<br />लाल बिंदी वाले चेहरे पर होती.<br />बचपन में पोस्ट ऑफिस में एक पोस्टमास्टर आये थे, उनके बेटे से मेरी बहुत पटती थी...जब तब हम एक दूसरे का हाथ थामे गलियों और चौराहे के चक्कर लगा आया करते थे...पिताजी की सामाजिक प्रतिष्ठा अच्छी थी(अपने घर से हजारों किलोमीटर दूर इस शहर में भी हमें वही मान और सम्मान मिलता था जो की गाँव में मिलता)...इसलिए उनके क्वार्टर पर जाने में कोई रोक टोक मुझे नहीं हुई....लेकिन एक कसक सी होती थी बाल मन में भी कि उसकी माँ हमारी माँ जैसी क्यूँ नहीं है....क्यूँ उसके घर में मुझे अच्छा अच्छा खाने को मिलता है और जैसे ही वो मेरी प्लेट छूता एक गुर्राती आँखें उसे ऐसा करने से रोक देती....लेकिन अपने दोस्त के लिए मैं उन्हें अपनी पॉकेट में भर लेता और क्रिकेट ग्राउंड में बैठ कर हम दोनों सखा उसका भरपूर आनंद उठाते....मेरे घर आने पर माँ उसका कुछ ज़्यादा ही ख्याल रखती और उस समय उसकी नम होती आँखें मुझसे छुपी न रहती थी लेकिन बाल मन कहाँ इतना परिपक्व होता है और कुछ क्षणों के पश्चात ही मैं सब कुछ भूलकर उसके साथ खेलने लग जाता लेकिन उसकी आँखें मेरी माँ की गोद हमेशा खोजती रहती और मेरी ही तरह मेरी माँ के गोद में वो भी अपनी जगह बना ही लेता और मैं जगता रहता लेकिन उसकी आँखें स्वप्नों के जाल तुरंत बुनने लग जाती. फिर कुछ दिनों के बाद उसके पिता का ट्रांसफर कहीं और हो गया और फिर हम कभी नहीं मिले....जब थोडा बड़ा हुआ तो माँ ने बताया कि उसके पिता ने दूसरा विवाह किया था.....और मैं जडवत....जिसकी गांठें आज भी जस कि तस हैं....और आपकी इस कविता ने उन गांठों को आज फिर हरा कर दिया.....<br />किसी मां को नहीं मर जाना चाहिए इस तरह <br />जैसे मर गई थी मेरी मां<br />एक दिन अचानक <br />सुबह-सवेरे<br />मुझे इस क़दर अकेला छोड़ कर<br />अपने सपनों की भारी गठरी <br />मेरे सिर पर छोड़ कर.<br />यह कोई तरीक़ा नहीं है प्यार <br />जताने का और जो प्रिय है उसका<br />जीना दुश्वार बना देने का !!!<br />इस पूरी कविता में मुझे हर जगह सिर्फ वही दिखा और माँ......बस माँ....Niraj Palhttps://www.blogger.com/profile/12597019254637427883noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-15407755810923311592012-01-15T00:41:14.354-08:002012-01-15T00:41:14.354-08:00बहुत रुलाया बाबा आपने, ऐसे हालातों से मैं भी गुजरी...बहुत रुलाया बाबा आपने, ऐसे हालातों से मैं भी गुजरी हूँ, पर मुझे तो न माँ का चेहरा ही याद है और न कोई बात, सिवाए एक दृश्य के कि जब वे अस्पताल में भर्ती थी और जब हम दोनों बच्चों को उनसे मिलने के लिए ले जाया गया तो जब तक हम ओझल नहीं हो गए, वे हाथ हिलाती हुई हमें दूर जाते हुए देखती रही...वो हिलता हाथ ही अब मेरी स्मृतियों में रह गया है! उनकी किताबें, अधूरी कढ़ी कुछ दस्तकारियाँ, एक अधूरा बुना तारों का सुंदर बैग ही रह गया था मेरे पास उन्हें याद करने के लिए....विमाता के डर से दूर हो गए पिता ने कभी भी उनका जिक्र तक नहीं किया हमसे, और कभी-कभी पड़ोसियों द्वारा की गयी उनकी भलमनसाहत की तारीफों में ही सदा ढूँढा उन्हें...... एक छोटे बच्चे के लिए माँ का जाना सचमुच बहुत दुखद है.......अंजू शर्माhttps://www.blogger.com/profile/13237713802967242414noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-48984343465529775912012-01-15T00:01:08.508-08:002012-01-15T00:01:08.508-08:00यह क्या लिख डाला आपने !
व्यथा की एक मर्मस्पर्शी अ...यह क्या लिख डाला आपने ! <br />व्यथा की एक मर्मस्पर्शी अनुगूंज पैठ गई है मेरे पूरे वजूद में . हतप्रभ-सा हो गया हूं. कई पंक्तियां इतनी पैनी हैं कि बरछी की तरह बेधती चली जाती हैं. बेचैनी और उद्वेलन थोडा कम हो और मन थोडा थिर हो तो कुछ और सोचूं इस कविता के बारे में.<br /><br /> "मां' कोई साधारण शब्द नहीं है<br /> यह तो पूरा संसार है ........ <br /> किसी मां को नहीं मर जाना चाहिए इस तरह<br /> जैसे मर गई थी मेरी मां<br /> एक दिन अचानक<br /> सुबह-सवेरे<br /> मुझे इस क़दर अकेला छोड़ कर ."<br /><br /> इन पंक्तियों को ऐसा विलक्षण और पुरअसर रूप आप जैसा भावप्रवण और सच्चा व्यक्ति ही दे सकता है . मुझे तो शब्द नहीं मिल रहे हैं. बरसों का जमा पुराना दुख इतना गल कर....तरल हो कर बह सकता है और ऐसा प्रभावकारी रचनात्मक रूप ले सकता है यह सोच कर ही मानव मन की सामर्थ्य और खूबसूरती पर हैरत होती है .<br /><br />आप जैसे सच्चे,भावप्रवण और प्रबुद्ध गुरु का स्नेह पा सका हूं यह मेरा सौभाग्य है. आज मकर संक्रांति के दिन माथा टिकाता हूं आपके चरणों में . आशीर्वाद दें कि अपनी सीमाओं में थोड़ा-बहुत जितना भी संभव हो आपके जैसा हो सकूं.<br /><br />मैं स्वीकार करता हूं कि किसी वयस्क शिशु की अपनी मां से ऐसी मार्मिक और कातर और तरल शिकायत मैंने और नहीं सुनी . 'मेरी मां' से शुरू होकर 'किसी भी मां' तक पहुंच कर यह कविता मृत्यु की पृष्ठभूमि में मातृत्व के जीवनदायी राग के आलाप में बदल जाती है.Priyankarhttps://www.blogger.com/profile/13984252244243621337noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-49622663869342309162012-01-14T23:49:15.524-08:002012-01-14T23:49:15.524-08:00kai saalon se dil me chupe dard ko shabdon me bakh...kai saalon se dil me chupe dard ko shabdon me bakhubi tarasha hai..." maa " se mahan iss duniya me koi nahi hai....koi ho bhi nahi sakta hai....bahut hridayshparshi likha hai aapne...kalp vermahttps://www.blogger.com/profile/09059075663443216964noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-12670093680364820922012-01-14T22:27:05.083-08:002012-01-14T22:27:05.083-08:00सब कुछ जैसे एक बार फिर मेरी आँखों के सामने से गुजर...सब कुछ जैसे एक बार फिर मेरी आँखों के सामने से गुजर गया.इस कविता ने दुःख को साझा कर लिया.मन भर आया वाकई किसी माँ के हिस्से दुःख नही होने चाहिए,आंसू नही होने चाहिए ,माँ का कलेजा मोम का होता है.लेकिन ज़िंदगी यही है... एक दिन हमारे दर्द दिल से निकल कर कागज़ पर शब्दों की शक्ल में ढल जाते हैं,और अमर और अविस्मरणीय बन जाते हैं.<br />मैं बार बार पढ़ रही हूँ ,बार बार जैसे कोई तीखी लकीर चीर रही है .....इससे ज़्यादा कह पाना मुश्किल है ,कविता ने मन भारी कर दिया.<br />बस .. माँ कोई साधारण शब्द नही है...."किसी मां को नहीं मर जाना चाहिए इस तरह<br />जैसे मर गई थी मेरी मां<br />एक दिन अचानक "संध्या नवोदिताhttps://www.blogger.com/profile/15331623185897820655noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-26589351048285621302012-01-14T22:24:47.522-08:002012-01-14T22:24:47.522-08:00This comment has been removed by the author.संध्या नवोदिताhttps://www.blogger.com/profile/15331623185897820655noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-12083589107739921662012-01-14T22:20:58.156-08:002012-01-14T22:20:58.156-08:00बेहद मर्मस्पर्शी मगर सत्य को उकेरती रचना ना जाने क...बेहद मर्मस्पर्शी मगर सत्य को उकेरती रचना ना जाने कहाँ तक ले गयी और उस बाल सुलभ मन पर अंकित दृश्य की वेदना को इस तरह कहने के लिये भी काफ़ी हिम्मत चाहिये होती है और समझ सकती हूँ ना जाने कितने यादो के गलियारों से गुजरे होंगे तब शायद कह पाये होंगे …………अन्दर तक जैसे गर्म सीसे सी उतरती चली गयी एक खाका सा खींच दिया आपने…………आपके दर्द की गहराई तक तो शायद कोई पहुंच ही नही पायेगा सिर्फ़ एक प्रश्न ही हर कोई अपने सम्मुख पायेगा……vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-87520806430616733992012-01-14T20:47:43.069-08:002012-01-14T20:47:43.069-08:00बहुत मर्मस्पर्शी कविता है . माँ तो माँ है ही ..महा...बहुत मर्मस्पर्शी कविता है . माँ तो माँ है ही ..महान, बच्चे का संसार ,बच्चे के व्यक्तित्व की नींव रखने वाली ..पर इस कविता में जो आपने एक चार साल के बच्चे के दिल में उतर कर उसके भावों को कविता में लिख दिया है वह ऐसा है जैसे ज़ख्मों को शीशे के टुकड़ों में पिरो दिया हो ..अनाथ. चिंता ..उस वक्त जबकि उसे पता नहीं इन शब्दों का अर्थ क्या होता है!और जिस लक्ष्मी माँ ने अपने सपनो का बोझ अपने चार साल के बच्चे के कन्धों पर डाल दिया ...उसकी लाल बिंदी शायद आज प्रतिभा बन कर उस बच्चे के माथे पर चमक रही है ..वह लक्ष्मी माँ उस पट्टी पर एक ऐसी ज़मीन रख गयी जिसमे उस बच्चे के भाव कविता के रूप में उग रहे हैं ...एक अनाथ बचपन के भावों का जो चित्र खींचा है आपने ...किसी भी मर्म को छू लेंगे यह भाव और कोई भी आँख रोये बिना नहीं रहेगी ...prem latahttps://www.blogger.com/profile/08491023259089069045noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-86237441671582441392012-01-14T19:29:42.774-08:002012-01-14T19:29:42.774-08:00एक तरफ अपनी जननी से प्रेम का यह उद्दात्त रूप और दू...एक तरफ अपनी जननी से प्रेम का यह उद्दात्त रूप और दूसरी ओर आज के समाज में उसी माँ-बाप के लिए इतना तिरस्कार ...?...इसे पढते हुए सुबह से ही यह सवाल मुझे मथ रहा है कि बच्चे अपने माँ- बाप को वृद्धाश्रम में कैसे छोड़ आते है, और क्यों उनके घरों में अपने ही रचनाकारों के लिए एक कोना तक नहीं खाली होता ...?रामजी तिवारी https://www.blogger.com/profile/03037493398258910737noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-25807637569497780492012-01-14T17:41:29.868-08:002012-01-14T17:41:29.868-08:00अनुभूत सत्य को बहुत प्रभावी ढंग से अभिव्यक्त करने...अनुभूत सत्य को बहुत प्रभावी ढंग से अभिव्यक्त करने वाली बेहतरीन कविता | बधाईजीवन सिंहhttps://www.blogger.com/profile/12928813138204126303noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-40853866972913495672012-01-14T17:09:45.117-08:002012-01-14T17:09:45.117-08:00मातृत्व और मृत्यु का मुखामुखम इस कविता को विशिष्ट ...मातृत्व और मृत्यु का मुखामुखम इस कविता को विशिष्ट बनाता है . मृत्यु की छाया में मातृत्व में निहित करूणा और कामना जितनी उद्दीप्त होती है , उतनी ही मातृत्व की छाया में मृत्यु की निकटता और आत्मीयता. यह स्मृति के कैमरे से जीवन और मृत्यु की द्वंद्वात्मक एकता को एक तीव्र और घनीभूत क्षण में कैप्चर करना है . शिल्प और भाषा के लिहाज से यह कविता विष्णु खरे की कतिपय श्रेष्ठतम कविताओं के साथ खड़ी होती है , लेकिन भाव में निजता का गहरा स्पर्श इसे इस का अपना अद्वितीय व्यक्तित्व प्रदान करता है .आशुतोष कुमारhttps://www.blogger.com/profile/17099881050749902869noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-9742410609680884652012-01-14T13:25:52.335-08:002012-01-14T13:25:52.335-08:00कुछ भी लिख पाने के हालत में नहीं हूँ........शब्दों...कुछ भी लिख पाने के हालत में नहीं हूँ........शब्दों पर ज़ज्बात भारी पड़ रहे हैं !!कुलदीप "अंजुम"https://www.blogger.com/profile/02096435711959078271noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-89920559488036212992012-01-14T13:12:51.521-08:002012-01-14T13:12:51.521-08:00मोहन जी, खूब रुलाया आपने...अपने दुखों का पहाड़ जैसे...मोहन जी, खूब रुलाया आपने...अपने दुखों का पहाड़ जैसे पाठकों से सर पर दे मारा हो....आप फ़िर भी हलके न होंगे...और न होंगे मेरे जैसे पाठक भी. आपकी आँखों को उसी लाल मोटी दिपदिपाती बिंदी का इन्तेज़ार तब तक रहेगा जब तक इन्हें देखना आता है. बचपन की छोटी से छोटी खोई हुई चीज़ भी जैसे वक्त को उसी जगह खूंटे पर बांध देती है, और अगर मां खो जाये, तब उसका उस क्षण से सरकना ना-मुमकिन ही है. मां पर इतनी मार्मिक कविता अभी तक नहीं पढी...सलाम उस शांति को जिसने ऐसे हाथ जने..Shamshad Elahee "Shams"https://www.blogger.com/profile/14542269543461516533noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-33916121030158465072012-01-14T09:01:24.738-08:002012-01-14T09:01:24.738-08:00बहुत कारुणिक कविता ! एक छोटे से बच्चे के लिए माँ क...बहुत कारुणिक कविता ! एक छोटे से बच्चे के लिए माँ का होना और फिर अचानक न होना कितना संघातिक होता है कि जिसका घाव जीवन भर नहीं भरता ! मार्मिक !अरुण अवधhttps://www.blogger.com/profile/15693359284485982502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-55880671824348256942012-01-14T08:41:52.035-08:002012-01-14T08:41:52.035-08:00AAP BEAWAR COLLEGE ME RAHE HE?
1975-1976 me aapne...AAP BEAWAR COLLEGE ME RAHE HE?<br /> 1975-1976 me aapne SD GOVT COLLEGE ME EK SEMINAR DI THI><br />www.facebook.com/drhschauhan/HARI SINGH CHAUHANhttps://www.blogger.com/profile/00962057939136117172noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-32366966285352729802012-01-14T08:09:23.475-08:002012-01-14T08:09:23.475-08:00behad marmik rachna haibehad marmik rachna haiदिल जो ना कह सकाhttps://www.blogger.com/profile/04366016583265498879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-10271493601619595292012-01-14T07:47:16.509-08:002012-01-14T07:47:16.509-08:00Main kuch kah nahin sakta.Is kavita par chup rahan...Main kuch kah nahin sakta.Is kavita par chup rahana hi meri nazar me Maa ko sacchi shradhaanjali aur usake liye saccha payar hai. Shabd maun hain , main chup hoon aur yah bahut mushkil se hota hai.Basanthttps://www.blogger.com/profile/15642125241765203051noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-92127569572703902102012-01-14T07:20:39.130-08:002012-01-14T07:20:39.130-08:00माँ की महिमा पर, और उसके महातम्य पर बहुत भावुक रचन...माँ की महिमा पर, और उसके महातम्य पर बहुत भावुक रचना. सँसार की हर भाषा, हर विधा में इस विषय में लिखा गया है. आपकी रचना उसी क्रम में एक सुन्दर अभ्व्यक्ति है.माँ की ममता पर मैंने भी एक कहानी लिखी है अब इससे प्रभावित होकर मै आज ही उसे अपने ब्लॉग में प्रकाशित कर रहा हूँ. प्रेरणा के लिए भी धन्यवाद.पुरुषोत्तम पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/01590298232558765226noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-23801553688443877272012-01-14T06:26:10.193-08:002012-01-14T06:26:10.193-08:00मां की यादें और मां की सीख नहीं भूली जा सकती इस जी...मां की यादें और मां की सीख नहीं भूली जा सकती इस जीवन में। यह कविता आत्म-कथ्य सी लगे मुझे पर शायद सारे शब्द बटोरूं तो भी इतने सहज भाव से इतना मार्मिक प्रभाव नहीं रच पाऊंगा। मेरे मन के भावों को ऐसी अभिव्यक्ति देने वाले रचनाकर के प्रति आंतरिक आभार।Prem Mohanhttps://www.blogger.com/profile/12628205999259643134noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-90408859842549192692012-01-14T06:14:11.107-08:002012-01-14T06:14:11.107-08:00bas foot foot kar ro padi hoon..bas foot foot kar ro padi hoon..लीना मल्होत्राhttps://www.blogger.com/profile/07272007913721801817noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-45281146937001293742012-01-14T04:08:08.189-08:002012-01-14T04:08:08.189-08:00etni sashakat lekin saraal kavita?adbhut,akalpniya...etni sashakat lekin saraal kavita?adbhut,akalpniya.parmanand shastrihttps://www.blogger.com/profile/07297848489739268744noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-35731662878042469912012-01-14T04:04:43.469-08:002012-01-14T04:04:43.469-08:00This comment has been removed by the author.parmanand shastrihttps://www.blogger.com/profile/07297848489739268744noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-70044779243094182122012-01-14T03:15:18.031-08:002012-01-14T03:15:18.031-08:00कुछ लिखने में असमर्थ हूँ...कुछ लिखने में असमर्थ हूँ...मनोज पटेलhttps://www.blogger.com/profile/18240856473748797655noreply@blogger.com