tag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post4887317468896074441..comments2023-06-06T09:22:06.996-07:00Comments on सोची-समझी: यह चौकस रहने का वक़्त है...विरासत को याद रखने का भीमोहन श्रोत्रियhttp://www.blogger.com/profile/00203345198198263567noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-79852238487513711672013-08-06T08:08:45.832-07:002013-08-06T08:08:45.832-07:00पर तब जर्मनी महाशक्ति होता ना श्रोत्रिय जी। और फाल...पर तब जर्मनी महाशक्ति होता ना श्रोत्रिय जी। और फालतू की दादगीरी होती जर्मनी की। आखिर शक्ति भ्रष्ट तो करती ही है। फासीवाद के मूलमें जहां नस्लीय श्रेष्ठता है वहीं अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण भी एक कारण है। राष्ट्र राज्य की अवधारणा में बहुलतावाद दरअसल एक विरोधाभास ही है। रही बात हमारे देश की तो इस बहुलतावाद का विकास प्राकृतिक था ना की एक सचेत प्रयास के द्वारा। ऐसे सभी सचेत प्रयास विफल ही हुये हैं चाहे वह अशोक का धम्म हो या अकबर का दीने इलाही अथवा नेहरू का धर्मनिरपेक्षतवाद। इस बहुलतावाद के विकास में इन सज्जनों से अधिक उस निरंतर संघर्ष का योगदान है जो विविध संस्कृतियों में हमेशा से होता आया है। संघर्ष ही नवसृजन का मूल है और आज धर्मनिरपेक्षतावादी इसी सहज प्रक्रिया को दबाने की कोशिश करते हैं, इसी से फासीवादी प्रतिक्रिया को बल मिलता है। Anupam Dixithttps://www.blogger.com/profile/07956766821087716544noreply@blogger.com