tag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post1665084103173400832..comments2023-06-06T09:22:06.996-07:00Comments on सोची-समझी: लीना मल्होत्रा राव की तीन ताज़ा कविताएंमोहन श्रोत्रियhttp://www.blogger.com/profile/00203345198198263567noreply@blogger.comBlogger39125tag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-82825212158659660092019-10-18T19:21:57.286-07:002019-10-18T19:21:57.286-07:00सुन्दरसुन्दरसुशील कुमार जोशीhttps://www.blogger.com/profile/09743123028689531714noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-72143310555247639812013-09-14T21:09:39.337-07:002013-09-14T21:09:39.337-07:00लीना ! मार्मिक कविता । प्राञ्जल-प्रवाह-पूर्ण ।लीना ! मार्मिक कविता । प्राञ्जल-प्रवाह-पूर्ण ।शकुन्तला शर्माhttps://www.blogger.com/profile/01128062702242430809noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-40114964560990287682013-06-11T09:13:58.295-07:002013-06-11T09:13:58.295-07:00दुख हमारे जीवन का मूल भाव है लेकिन कवि के लिए एक अ...दुख हमारे जीवन का मूल भाव है लेकिन कवि के लिए एक अनुभव है .कविता में दुख को कैसे प्रकट करना चाहिए यह कवि के सामने एक चुनैती है.निराला की कविता दुख ही जीवन की कथा रही .याद करे तो हमे लगेगा कि उनका दुख अकेले का दुख नही है .हम सब उसमे शामिल है .कविता की सफल्ता यही है.इधर लीना ने अलग तरह की कविताये लिखी है जो मर्म को छूती है.उन्हे दूसरे भावभूमि का भी चुनाव करना चाहिये ताकि उनकी कविता में नये लोक उदघाटित हो.अच्छी कविता के लिये शुभकामनायेSwapnil Srivastavahttps://www.blogger.com/profile/10836943729725245252noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-23688701871848356922013-01-17T10:53:39.210-08:002013-01-17T10:53:39.210-08:00Leena jee aap bahut accha likhti hain.aapko hardik...Leena jee aap bahut accha likhti hain.aapko hardik badhai. - kamal jeet choudhary ( j and k )कमल जीत चौधरीhttps://www.blogger.com/profile/02329691172978131438noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-75132667062873907242011-12-13T01:46:19.457-08:002011-12-13T01:46:19.457-08:00अच्छी कविताओं के लिए शुक्रिया....!अच्छी कविताओं के लिए शुक्रिया....!satyapal sehgalhttps://www.blogger.com/profile/16031665823012601995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-81366717092794456342011-10-16T02:10:35.690-07:002011-10-16T02:10:35.690-07:00लीना जी की कविताओं को पढ़ते हुए मैंने उन्हें प्राय...लीना जी की कविताओं को पढ़ते हुए मैंने उन्हें प्रायः एक सजग और गहरे आत्मबोध के कवि के रूप में ही पहचाना है | यहाँ प्रकाशित, वाराणसी प्रवास के दौरान लिखी उनकी कविताओं में आत्म के विस्तार की जो आकांक्षा अभिव्यक्त होती दिखती है उसमें निरी समकालीनता नहीं है, बल्कि उसके पार जाने की चेष्टा भी नज़र आती है | यह उनकी कविता को और उनके कवि को एक क्लैसिकल आयाम देता है |Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/12836611162321633100noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-2242466420860392212011-10-13T10:59:45.980-07:002011-10-13T10:59:45.980-07:00isme koi shak hi nahi ki leena ki kavitayen aaj ke...isme koi shak hi nahi ki leena ki kavitayen aaj ke daur me khaas jagah rakhti hain. Badhai Leena!Pratibha Katiyarhttps://www.blogger.com/profile/08473885510258914197noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-31380436959303854402011-10-13T03:46:01.625-07:002011-10-13T03:46:01.625-07:00मै अपनी इस कविता पर प्राप्त लगभग ५० टिप्पणियों में...मै अपनी इस कविता पर प्राप्त लगभग ५० टिप्पणियों में से कुछ टिप्पणियां यहाँ पोस्ट कर रही हूँ.. इसका आशय सिर्फ इतना है की कविता अपना मर्म यदि पाठक तक संप्रेषित कर देती है तो मेरी दृष्टि में वह कविता है अन्यथा कविता नही है.. और पाठक की आलोचना किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त नही होती ....<br /><br />Vineeta Johri badi hriday ko chhuti hui marmik Kavita hai Aparnaji, Maan vaise hi aaj Jagjit singh ji ki mrityu se kafi pighla hua sa hai, uss par ye antarmann ko jhhakjhhorti hui , zeevan aur mrityu ke mayne samjhati Kavita...........<br /><br />Rajeev Kumar BEHAD UMDA....!<br /><br />Shahbaz Ali Khan आपकी बनारस पे लिखी कविता पढ़ी ,अबतक की आपकी सभी कविताओं में सबसे अच्छी लगी .यूँ मैं हिंदी कविता का विशेष पाठक और समीक्षक दोनों नहीं हूँ लेकिन ये कविता सीधे अंदर तक उतर गयी ...शुक्रिया यूँही लिखती रहें .और किसी रचना की तत्काल समीक्षा से उसके रस ग्रहण में बाधा पहुँचती है. इस तरह की समीक्षाओं के लिए कहूँगा.. माना कि " बहुत कड़वी है मय इस साक़ी की/रंग लाएगी गर सांसों में उतर जाने दो".....<br />Monday at 4:08am<br /><br />Rajesh Tripathi nice one..apne bahoot bade reality ko kaha hai is kavita ke madhyam se....really touching........<br /><br />Sandhya Yadav यथार्थवादी कविता...<br /><br />Jai Narain Budhwar kavita me anubhht yatharth aur gahan samvedna h.badhai leena ji<br />October 7 at 10:50pm <br /><br />Veena Bundela leena aap zindgi se kavita bunti hain ya aapki kavitayen jeevan ka tana bana ..sunder kavitayen.jaldi me padhi hain sukun se padhana baki hai abhi....<br /><br />Nirmal Paneri भूखे पिता यात्रा पर निकलने से पहले खा लेते हैं <br />जौ और काले तिल बेटे के हाथ से <br />चूम कर विवश बेटे का हाथ एक बार फिर उतर जाते हैं पिता घाट की सीढियां .... मर्म को आप ने शब्दों में बांधा वो बहुत लाजवाब है ...बध्याई ..बाकि मैने पढ़ी है ये आज ही देखि है !!!!!!!!!!!!!!!!!!<br /><br />चड्ढ़ा Rajesh Chadha राजेश अद्धभुत.....!<br />October 6 at 8:46am ·<br /><br />Meethesh Nirmohi Kavitaon par bahut kuch kaha ja sakata hai,Lekin kavitayen imandaree se rachee gayee hain..Mohan ji ne bahut kuch kah diya hai,Badhai.<br />ashish pandey said....<br />घाट की सीढियां बेटियों सी पढ़ लेती हैं अनकहा इस बार भी...<br /><br />अंतिम दो कविताओं में बनारस की यात्रा और वहाँ के अनुभवों को यूँ जी कर शब्दों में में बिखेर देना जैसे " बादल से चले आते हैं मज़मून मेरे आगे "<br />और स्त्री मनःस्थिति को स्वर देना वह भी पुरुष के पौरुष को यूँ उदारता से दुखाते हुए ... लीना जी आभारलीना मल्होत्राhttps://www.blogger.com/profile/07272007913721801817noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-27774952347205839422011-10-11T22:16:55.726-07:002011-10-11T22:16:55.726-07:00लीना जी की कविता सचमुच ही अद्भुत है. बहुत सधी, और ...लीना जी की कविता सचमुच ही अद्भुत है. बहुत सधी, और दूर तक देखने वाली. बनारस पर केदार जी की कविता में कुछ नए आयाम जोडती है यह. सार्थक आयाम. चूंकि कहने की बातें काफी और बदली हुई हैं, और शब्द कम हैं, इसलिए कविता कई बार इशारतन बतियाती है. दूसरे यह कविता बनारस को मेरे हिसाब से एक जगह फ्रीज करती है. कविता पढते हुए बनारस पर लिखी हुई और कवितायें पृष्ठभूमि बनाती हैं. बनारस-बोध. अब यह लीना जी का बनारस इसी गतिशील पृष्ठभूमि में ठहराया गया है. 'बेटियों सी...' एक सुगठित काव्य बिम्ब है जो इस काव्य-संरचना में भीषण अर्थ हासिल कर लेता है. शायद.<br /><br />नीलकमल जी की टिप्पणी पढते हुए लगता रहा कि पता नहीं क्यों, हम कवि भी कई बार दूसरों की कविता के लिए वे औजार इस्तेमाल करते हैं, जिन्हें हम अपनी कविता पर लागू नहीं होने देना चाहते.<br />मसलन काव्य-तर्क. हर कवि इस बात से झल्ला उठेगा कि उसकी कविता को "तर्कशास्त्र" के नियमों पर कसा जा रहा है. कविता के तर्क सामान्य तर्क नहीं होते. पर जब दूसरे की कविता से प्रश्न होगा तो यही होगा कि 'घाट मदिरा पिए?' या 'सोंधी खुशबू, वह भी बनारस में?' या 'सोता हुआ घाट?'<br /><br />किसी काव्य बिम्ब में ये बातें उतनी ही सहज हैं, जितनी पानी में मछली. <br /><br />पता नहीं क्यों, पर मुझे लगता है कि कवि की आलोचना, आलोचकों के घिसे हथियारों के इस्तेमाल में सहलता महसूस करती है. कवि अपनी कविता और कविता की आलोचना को संबद्ध नहीं करता. यह करना चाहिए/होगा. और मेरे हिसाब से यह रास्ता रचना-प्रक्रिया के विश्लेषण की तरफ खुलता है.मृत्युंजयhttps://www.blogger.com/profile/09135755676182103803noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-64519880402049870832011-10-11T10:16:15.293-07:002011-10-11T10:16:15.293-07:00सुन्दर कवितायेंसुन्दर कवितायेंAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/16315054585574087560noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-78366685394333390312011-10-10T10:53:24.864-07:002011-10-10T10:53:24.864-07:00aur ant men leenaji - Ashutosh kumarji , mohan ...aur ant men leenaji - Ashutosh kumarji , mohan shrotriya ji... मै आभारी हूँ की आपने मेरी कविता का मर्म समझा और उसे अभिव्यक्त किया...neelkamalji मदिरा और मन्त्र दोनों ही रूपांतरण करते हैं.. रहस्यों पर से पर्दा उठाते हैं. .. बनारस जीवन और मृत्यु के संधि स्थल पर टिका हुआ लगा मुझे.. घाट और सीढिया इसी अन्र्विरोध में परिलक्षित होते हैं. और और पंडो की दुकानदारी ने ८४ दानो का जिस तरह व्यापार चलाया है वह मुझे किसी शराबी की दूकान पर जुटी भीड़ से अधिक नही लगा...यह एक सर्व विदित सत्य है की आज माँ बाप को पिंडदान में भोग मिल सकता है लेकिन जीते जी प्यार की रोटी नही. ..सीढ़ियों का जागे रहना एक बिम्ब है.. जिसे कोई भी कवि मन समझ सकता है.. इसकी तुलना इसी लिए मैंने बेटियों से की है.. यह मेरा दृष्टिकोण है. और हाँ दिल्ली आइयेगा.. यहाँ के ट्रेफिक में फंस कर लगभग बहरे होकर जब आप घर पहुँचते हैं. ऐसे में काशी की रिक्शा और वहां की धीमी गति से गुजरती सड़कें आपको भी सोंधी ही लगेगीं. ..<br /> <br /><br />Write a comment...आशुतोष कुमारhttps://www.blogger.com/profile/17099881050749902869noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-44261404248335365772011-10-10T10:52:16.096-07:002011-10-10T10:52:16.096-07:00neel kamal kee teep par meree teep par mohanda ke...neel kamal kee teep par meree teep par mohanda kee teep - कविता में व्यक्त यथार्थ को आपने उसकी पूरी द्वन्दात्मकता में, इतिहास और वर्तमान दोनों के अंतर्विरोधों की पृष्ठभूमि तथा uski गत्यात्मकता के सन्दर्भ के साथ जोड़कर, कविता को वह अर्थ दे दिया है, जो संदर्भित टिप्पणी में नज़रों से ओझल हो गया था. एक संवेदनशील कवि(लीना, प्रस्तुत सन्दर्भ में) की यथार्थ की पकड़ 'रेखीय' नहीं होती, खासकर वहां जहां जटिलताएं इतनी हों कि यथार्थ के अंतर्विरोध सामान्य व्यक्ति की पकड़ से 'फ़िसल' जाने का खतरा पैदा कर देते हों. यह कविता निस्संदेह इस दौर की श्रेष्ठ कविताओं में से है. जब लीना ने यह कविता, अन्य कविताओं के साथ, मुझे भेजी तो सच कहूं, पहले पाठ में ही यह कविता मुझे विशेष रूप से 'भा' गई. मेरे पास चयन के विकल्प थे क्योंकि लीना की पिछले दिनों लिखी लगभग बीस कविताएं मेरे पास पहले से थीं. पर मैंने इस कविता को आखिर में रखा " कभी की बिनाका गीतमाला की आखिरी पायदान पर" की तर्ज़ पर, और यह महज़ संयोग नहीं है कि यहां भी इस कविता को खूब सराहा गया है.<br />पुनश्च...... 'घाट की सीढियां बेटियों सी' यह रूपक विशेष रूप से उल्लेखनीय हो जाता है, इसके बाद आने वाले 'क्रिया-पद' के बल पर.आशुतोष कुमारhttps://www.blogger.com/profile/17099881050749902869noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-76706361828987212392011-10-10T05:46:41.000-07:002011-10-10T05:46:41.000-07:00लीनाजी द्वारा रचित कुछ और नई एवम ताज़ा कवितायेँ... ...लीनाजी द्वारा रचित कुछ और नई एवम ताज़ा कवितायेँ... पढना.. बार-बार पढना और खुद को कविता में खो जाने का मन करता है! लाजवाब रचनाएँ! मन के संवेदनशील हिस्से को अपनी खुराक मिल जाती है! कम शब्दों में - एक आत्ममुग्ध भावपूर्ण कविता संग्रह. धन्यवाद श्रोत्रियजी. <br /><br />लीना की कविताएँ जीवन्तता और अकूत उमंग भरी है. इनका लेखन अंदाज़ और विषय आधुनिक नारी की सशक्त प्रस्तुति है, जिसमे नारी के सन्दर्भ में, मानवीय रिश्ते- की रचनागत विशिष्टता दिखती है. इनके लेखन शैली ने अनेक कवियों को और कवयित्रियों को एक नया साहस दिया है. इन्होने अपनी रचनाओं से साहित्य जगत में अपने जीवन के एक नए युग का आरम्भ किया है. अक्सर कैजुअल अंदाज़ में कई गंभीर बातों को कह देना इनकी कविताओं की विशेषता है. इश्वर से प्रार्थना है की आप लिखती रहें, लिखती रहें. <br /><br />मैं मोहनजी से पूर्णतः सहमत हूँ कि हिंदी कविता में एवम कवि जगत में लीना की जगह एकदम सुरक्षित है!Vipulhttps://www.blogger.com/profile/11560013974090733493noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-61482346946690389042011-10-10T05:10:21.521-07:002011-10-10T05:10:21.521-07:00kavi neel kamal kee teep -
कविता की खिड़की से बनारस...kavi neel kamal kee teep -<br />कविता की खिड़की से बनारस को देखना<br />by Neel Kamal on Monday, October 10, 2011 at 5:37am<br /><br />सुबहे बनारस और शामे अवध । ये दोनों ही अपनी खासियत के लिए जगत विख्यात हैं । बनारस से लौट कर एक बार के लिए किसी का भी मन आध्यात्मिकता में डूब जाने की सम्भावना सौ फ़ीसदी रहती है । बनारस है ही ऐसा - मृत्यु को उसकी सहजता में जीता , मुक्ति के दरवाज़ों पर दस्तक देता और जिन्दगी की अव्वल परेशानियों को पान की पीक के साथ बाहर फ़ेंकता हुआ । बनारस अपने में एक रहस्य छुपाता शहर भी है ।<br /><br />ऐसे में बनारस पर लिखी कोई भी कविता एक बार अपनी ओर देखने के लिए पर्याप्त आकर्षण रखती है । "बनारस में पिण्डदान" ( कवि - लीना मल्होत्रा ) कविता इस खास शहर के अन्दर झाँकने के लिए खिड़कियाँ खोलती है । कविता का स्वर कोमल होते हुए भी इसमें कुछ प्रश्न हैं जिनका उत्तर किसी भी पाठक की जिग्यासा का विषय हो सकता है । प्रथम पंक्ति में ही मन्त्रों की भीनी मदिरा पीकर बहोश घाट पर जागती सीढ़ियों का चौंकाने वाला बिम्ब है । बनारस के घाट और बेहोश !! वह भी मन्त्रों की मदिरा पीकर ?? तो फ़िर सीढ़ियाँ कैसे जाग रही हैं ? बनारस का एक खुला रहस्य यह है कि इसके घाटों में से कुछ तो ऊँघते भी नहीं । यह शिव की नगरी है । कोई मदिरा बनारस के घाटों को बेहोश कर दे तो हैरत होनी चाहिए उस मदिरा की तासीर पर । बनारस मे अनुमानत: चौंतीस घाट हैं जिनमें से एक तो ऐसा कि जहाँ चिताओं की आग कभी बुझती ही नहीं - यह मणिकर्णिका है ।<br /><br />एक अन्य बिम्ब है बनारस की सोंधी सड़कों पर गिरते पड़ते आते पगलाए पुत्र का । यह बिम्ब भी बड़ा चौंकाने वाला है । बनारस की सड़कें सोंधी कब से होने लगीं । हाँ पान-ज़र्दे की एक खुशबू की बात फ़िर भी ज़्यादा विश्वसनीय हो सकती थी । कविता में आगे रोली मोली से सज्जित कुपित पिता का एक ऐसा ही तीसरा बिम्ब है । कवि का संकेत है कि बेटों की नासमझी पर उन्हें शहर से निकाल देना चाहिए था । प्रश्न यहाँ यह है कि ये बेटे आखिर इस कदर पगलाए हुए और नासमझ क्यों हैं ? इस प्रश्न का प्रतिकार करती बेटियों सी सीढ़ियाँ पिता के अनकहे को पढ़ लेती हैं । यह ज़रूर एक सहज कोमल भावना का ही विस्तार हो सकता है । पिंड के आटे में बेटे चुपचाप गूंथ देते हैं अपना अफ़सोस - यह अफ़सोस कैसा है ? क्या बेटे सच में इतने ही निष्ठुर होते होंगे ?? क्या ये वही बेटे होंगे जो पिता की देह पर आखिरी यात्रा से पहले घी और चन्दन का लेप करने की विडम्बना को जीते है ? जो पिता को मुखाग्नि देते वक्त आत्मा की गहनतम तहों तह काँप जाते हैं , क्या ये वही बेटे हैं ? या कही कवि के अवचेतन में बेटों की कोई क्रूर छवि अंकित है ।ये सभी प्रश्न एक सामान्य पाठक के प्रश्न हो सकते हैं ।आशुतोष कुमारhttps://www.blogger.com/profile/17099881050749902869noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-68593352189218157262011-10-09T21:58:51.901-07:002011-10-09T21:58:51.901-07:00नील कमल संवेदनशील कवि और समीक्षक हैं. जिस कविता मे...नील कमल संवेदनशील कवि और समीक्षक हैं. जिस कविता में गिरते पड़ते पगलाए बेटे अफ़सोस , उदासी और विवशता के साथ आये हों , उस में बेटों की क्रूर छवि उन्होंने कैसे देख ली , यह आश्चर्यजनक है. मन्त्रों की मदिरा पी कर घाट बेहोश हों , लेकिन सीढियां जागती हों , सड़कें सोंधी हों , इस में बनारस के इतिहास और वर्तमान का समूचा अंतर्विरोध देखा जा सकता है. पैरों के नीचे बिछी जागती सीढियां घाटों तक ले जाती हैं , लेकिन मुक्ति , हिन्दू परम्परा में , घाट पर बेटों के हाथों ही मिल सकती है. अंतिम संसकारों तक में पितृसत्ता के इस हस्तक्षेप की विडम्बना को जितनी मार्मिकता से इस कविता में कहा गया है , उस का सम्बन्ध पिता और पुत्रों के रिश्ते की समूची जटिलता से जुड़ जाता है. यह कविता निस्संदेह बनारस पर लिखी केदारजी की प्रसिद्द कविता से आगे जाती है.आशुतोष कुमारhttps://www.blogger.com/profile/17099881050749902869noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-11108774049566404602011-10-08T22:29:25.212-07:002011-10-08T22:29:25.212-07:00bahut hi khoobsurat kavitayen hai .bahut hi khoobsurat kavitayen hai .KULDEEP SINGH 'DEEP'https://www.blogger.com/profile/14527003047889585955noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-51576205415426895512011-10-08T05:59:36.953-07:002011-10-08T05:59:36.953-07:00आभार आप सब मित्रों के स्नेह का, सराहना का... आशुत...आभार आप सब मित्रों के स्नेह का, सराहना का... आशुतोष जी, अशोक जी, महेश जी मेरे लिए आप सभी के ये शब्द अमूल्य हैं जो मुझे आगे बढ़ने में मेरा मार्गदर्शन करेंगे, प्रोत्साहन देंगे, आदरणीय मोहन श्रोतिया जी को तो आभार कैसे कहूं उनसे तो बस यही आग्रह कर सकती हूँ कि अपना स्नेह बनायें रखें , मैं बहुत सौभाग्यशाली हूँ कि उन्होंने मुझे चुना पहले आख्यान के लिए फिर ब्लॉग के लिए भी .. यह उन्ही का बडप्पन हैं ..उनके स्नेह के आगे नतमस्तक हूँ. नमन.लीना मल्होत्राhttps://www.blogger.com/profile/07272007913721801817noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-4372071714361551322011-10-08T05:37:50.761-07:002011-10-08T05:37:50.761-07:00Beautifully written. Bahut hi sunder abhivayakti.Beautifully written. Bahut hi sunder abhivayakti.koki50https://www.blogger.com/profile/02697164495581381847noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-15962072084185616552011-10-08T03:28:52.235-07:002011-10-08T03:28:52.235-07:00लीना की कविताओं से परिचय फेसबुक पर ही हुआ और दावे ...लीना की कविताओं से परिचय फेसबुक पर ही हुआ और दावे से कह सकता हूँ कि वह हिन्दी की मुख्यधारा में लिख-छप रहे तमाम कवियों से कहीं आगे की कविताई कर रही हैं. उन्हें बहुत जल्द प्रिंट में प्रमुखता से देखने की ख्वाहिश है.Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-84847099430532634492011-10-08T02:09:49.897-07:002011-10-08T02:09:49.897-07:00मोहनदा, कृपया Word verification हटा दीजिये.मोहनदा, कृपया Word verification हटा दीजिये.आशुतोष कुमारhttps://www.blogger.com/profile/17099881050749902869noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-10864410222402007672011-10-08T02:08:41.200-07:002011-10-08T02:08:41.200-07:00door takdoor takआशुतोष कुमारhttps://www.blogger.com/profile/17099881050749902869noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-40171352500090381702011-10-08T02:07:23.416-07:002011-10-08T02:07:23.416-07:00khaas taur par pahalee aur teesaree kavitaa ddor t...khaas taur par pahalee aur teesaree kavitaa ddor tak vichalit karatee hai.आशुतोष कुमारhttps://www.blogger.com/profile/17099881050749902869noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-14913324019914626622011-10-07T23:15:50.309-07:002011-10-07T23:15:50.309-07:00Leena, Namaskaar. bahut sundar bhav, vichaar, abhi...Leena, Namaskaar. bahut sundar bhav, vichaar, abhivyakti. Aaj aap se baat karan sobhagya shali raha, varna, aap ke iss roop ke baare me jaankari hi nhn hoti. Stree ke manobhavon evam saamajik vastusthiti ki kavita me itni sundar abhivyakti, atyant sarahniya h. Hum dua karte hn, aap iss vidhaa me nikharti jaayen, evem sahitya jagat me ek alag jagah banaayen. Hamari shubh kaamnayen sadiav aapke saath hn.omiykhttps://www.blogger.com/profile/13067395824666376092noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-81418065657959305632011-10-07T22:01:19.438-07:002011-10-07T22:01:19.438-07:00Leena, Namaskaar. bahut sundar bhav, vichaar, abhi...Leena, Namaskaar. bahut sundar bhav, vichaar, abhivyakti. Aaj aap se baat karan sobhagya shali raha, varna, aap ke iss roop ke baare me jaankari hi nhn hoti. Stree ke manobhavon evam saamajik vastusthiti ki kavita me itni sundar abhivyakti, atyant sarahniya h. Hum dua karte hn, aap iss vidhaa me nikharti jaayen, evem sahitya jagat me ek alag jagah banaayen. Hamari shubh kaamnayen sadiav aapke saath hn.omiykhttps://www.blogger.com/profile/13067395824666376092noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-511904457570555760.post-32598498175376442632011-10-06T22:21:40.298-07:002011-10-06T22:21:40.298-07:00लीना का अपना संसार है .. कहन और संवेदना विस्मित कर...लीना का अपना संसार है .. कहन और संवेदना विस्मित करती हैं .. गद्य में कविता का शरीर किस गीतात्मकता से बढ़ता है ... उसके हाथ -पैर , माथा ... पूरी देह यथार्थ से ऐंद्रिकता की ओर ले जाते हैं .. ये जादू है अपने तरह का .. बधाई ! लीना और श्रोतिया सर को .. सुन्दर कविताएँ , अनुपम चयन ..अपर्णा मनोजhttps://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.com